SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 163
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १६५ ) लिए निमित्त व सहचारी दो शब्द आचार्यकल्प ५० टोडरमल जी ने डाले हैं। प्रश्न ३८- क्या निश्चय सम्यग्दर्शन और व्यवहार सम्यग्दर्शनऐसे दो प्रकार के सम्यग्दर्शन हैं ? उत्तर-नही, सम्यग्दर्शन एक ही प्रकार का है दो प्रकार का नही है, किन्तु उसका कथन दो प्रकार से है । जहाँ श्रद्धागुण को शुद्ध पर्याय को सच्चा सम्यग्दर्शन निरूपण किया है वह निश्चय सम्यग्दर्शन है, तथा देव-गुरु-शास्त्र का राग जो सम्यग्दर्शन तो नही किन्तु सम्यग्दर्शन का निमित्त व सहचारी है उसे उपचार से सम्यग्दर्शन कहा जाता है। किन्तु व्यवहार सम्यग्दर्शन को सच्चा सम्यग्दर्शन माने तो वह श्रद्धा मिथ्या है, क्योकि निश्चय और व्यवहार का सर्वत्र ऐसा ही लक्षण है अर्थात् सच्चा निरूपण वह निश्चय और उपचार निरूपण वह व्यवहार है। निरूपण की अपेक्षा से सम्यग्दर्शन के दो प्रकार कहे हैं, किन्तु एक निश्चय सम्यग्दर्शन है और एक व्यवहार सम्यग्दर्शन है-इस प्रकार दो सम्यग्दर्शन मानना वह यिथ्या है। प्रश्न ३९-क्या निश्चय चारित्र और व्यवहारचारित्र-ऐसा दो प्रकार का चारित्र है ? उत्तर-(प्रश्न ३८ के अनुसार उत्तर दो) प्रश्न ४०-ध्या निश्चय श्रावकपना और व्यवहार श्रावकपनाऐसा दो प्रकार का श्रावकपना है? उत्तर-(प्रश्न ३८ के अनुसार उत्तर दो) प्रश्न ४१-क्या निश्चय मुनिपना और व्यवहार मुनिपना-ऐसा वो प्रकार का मुनिपना है ? । उत्तर-प्रश्न ३८ के अनुसार उत्तर दो) प्रश्न ४२-क्या निश्चय एषणा समिति और व्यवहार एषणा समिति-ऐसी दो प्रकार की एषणासमित हैं ? उत्तर-(प्रश्न ३८ के अनुसार उत्तर दो)
SR No.010121
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy