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________________ { १६४ ) (२) "वीतराग भाय ही मोअमार्ग है।" प्रश्न ३४-क्या निश्चय-व्ययहार दो मोक्षमार्ग हैं ? उत्तर -- विल्कुल नहीं, क्योकि मोक्षमार्ग तो एक वीतराग भाव ही है दो मोक्षमार्ग नहीं है । परन्तु मोक्षमार्ग का कथन का दो प्रकार से है। प्रश्न ३५---उभयाभासी दो प्रकार का मोक्षमार्ग प्यो मानता है ? उत्तर--अपने ज्ञान की पर्याय में निर्णय करके यथावत निश्चयव्यवहार मोक्षमार्ग को नही पहिचानने के कारण उभयाभासी दो प्रकार का मोक्षमार्ग मानता है। प्रश्न ३६--उभयाभासी दो प्रकार का मोक्षमार्ग मानता है, उसे प० टोडरमल जी ने क्या बताया है ? उत्तर- मोक्षमार्ग दो नहीं है, मोक्षमार्ग का निरूपण दो प्रकार है। जहाँ सच्चे मोक्षमार्ग को मोक्षमार्ग निरूपित किया जाये तो निश्चय गोक्षमार्ग है। और जहाँ जो मोक्षमार्ग तो है नहीं, परन्तु मोक्षमार्ग का निमित्त है व सहचारी है उसे उपचार से मोक्षमार्ग कहा जाये सो व्यवहार मोक्षमार्ग है, क्योकि निश्चय-व्यवहार फा सर्वत्र (चारो अनुयोगो मे) ऐमा ही लक्षण है । सच्चा निरूपण सो निश्चय, उपचार निरुपण सो व्यवहार, इसलिए निरूपण अपेक्षा दो प्रकार का मोक्षमार्ग जानना। [किन्तु] एक निश्चय मोक्षमार्ग है, एक व्यवहार मोक्षमार्ग है-- इस प्रकार दो मोक्षमार्ग मानना मिथ्मा है। प्रश्न ३७-निमित्त व सहचारी हो. उसे उपचार से मोक्षमार्ग कहा जावे सो व्यवहार मोक्षमार्ग है। इसमें निमित्त व सहचारी ऐसे दो शब्द कहने का क्या रहस्य है ? उत्तर-मोक्षमार्ग होने पर ज्ञानी का शुभभाव निमित्त है और सहचारी भी है । परन्तु अशुभ भाव सहचारी तो है परन्तु निमित्त नहीं है । अत मोक्षमार्ग होने पर जिस भाव मे निमित्त व सहचारीपना पाया जावे उसे व्यवहार मोक्षमार्ग कहा जाता है। यह बतलाने के
SR No.010121
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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