________________
( १६२ ) का साधन साधते हैं, वे जीव भी मिथ्यादष्टि जानना।" इस वाक्य को नस्पष्टता से समझाइये?
उत्तर- (१) मै निश्चय से सिद्ध समान शुद्ध हूँ-केवलज्ञानादि सहित हूँ और व्यवहार से ससारी हूँ, मति-श्रुतज्ञान सहित हूँ-यद्यपि इस प्रकार निश्चय-व्यवहार अगीकार करने में दोनो नयो मे परस्पर विरोध है । क्या विरोध है ? उत्तर-एक ही समय मे पर्याय अपेक्षा सिद्ध भी हो और ससारी भी हो। एक ही समय मे पर्याय अपेक्षा केवलज्ञान-केवलदर्शन भी हो और मति-श्रुतज्ञान चक्षु-अचक्षुदर्शन भी -हो-ऐसा कभी भी नही हो सकता है। (२) तथापि करें क्या ? उन्मत्त जैसी दशा हो जाती है। उन्मत्त जैसी दशा क्यो हो जाती है ? उत्तर-मच्चा तो निश्चय व्यवहार दोनो नयो का स्वरूप भासित हुआ नहो । (३) सच्चा निश्चय-व्यवहार दोनो नयो का स्वरूप मासित न होने का क्या फल हआ ? उत्तर-जिनमत मे निश्चयव्यवहार दो नय कहे है इनमे से (निश्चय-व्यवहार मे से) किसी को छोडा भी नहीं जाता, ऐसा मानकर दोनो नयो का साधन करता है। (४) ५० टोडरमल जी क्या बतलाते है ? इसलिए भ्रम सहित निश्चयच्यवहार दोनो का साधन साधने वाले जीवो को मिथ्यादृष्टि जानना।
प्रश्न ३०-"(१) यद्धपि इस प्रकार अंगीकार करने मे दोनो नयो के परस्पर विरोध हैं, (२) तथापि करें क्या ? सच्चा तो दोनो नयो का स्वरूप भासित हुआ नहीं, (३) और जिनमत मे दो नय हे हैं, उनमे से किसी को छोड़ा भी नहीं जाता, (४) इसलिए भ्रमसहित बोनो का साधन साधते हैं, वे जीव भी मिथ्यादृष्टि जानना।" इस बाक्य पर उभयाभासी मान्यता वाला जीव निश्चय व्यवहार मुनिपने को कैसा मानता है ?
उत्तर--(१) सकलचारित्र पर्याय मे प्रगट न होने पर भी सकलचारित्र मुझे है यह निश्चय मुनिपना और २८ मूलगुणादि का पालन