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________________ उत्तर- पात्र भव्य जीवो को यह जानना चाहिये कि मेरे में सिद्धपने, केवलज्ञानादिपने की शक्ति मौजूद है। मेरी पर्याय मे दोष है वह मेरे अपराध से ही है-ऐसा जानकर शक्तिवान का आश्रय • लेकर धर्म की प्राप्ति करनी चाहिए। प्रश्न २७–व्यवहाराभासी किसे कहते हैं ? उत्तर-जिनागम मे जहाँ व्यवहार की मुख्यता से उपदेश है उसे मानकर बाह्य साधनादिक ही का श्रद्धानादिक करते हैं उसे व्यवहाराभासी कहते है। [मोक्षमार्गप्रकाशक पृष्ठ २१३] प्रश्न २८-व्यवहाराभासियो मे किस-किस प्रकार की उल्टी मान्यतायें पाई जाती हैं ? ____ उत्तर-(१)कोई कुल अपेक्षा धर्म को मानते हैं, (२)कोई परीक्षा-- रहित शास्त्रो की आज्ञा को धर्म मानते हैं, (३) कोई परीक्षा करके जैनी होते है, परन्तु मूल प्रयोजनभूत बातो की परीक्षा नहीं करते हैं, (४) कोई सगति से जैन धर्म धारण करते है, (५) कोई आजीविका के लिए बडाई के लिये, जैन धर्म धारण करते हैं, (६) अरहन्तभक्तिगुरुभक्ति-शास्त्र भक्ति का अन्यथारूप श्रद्धान करते हैं, सच्चा श्रद्धान नही करते हैं, (७) जीव-अजीव, आस्रव-वध, सवर-निर्जरा और मोक्ष : तत्त्वो का अन्यथारूप श्रद्धान करते हैं, (८) सम्यग्ज्ञान का अन्यथा- . रूप का विश्वास करते है, (६)सम्यकचारित्र का अन्यथारूप आचरण करते हैं । इस प्रकार प्रथम व्यवहार चाहिए, व्यवहार करते-करते । निश्चय धर्म प्रगट हो जावेगा। ऐसो-ऐसी उल्टी मान्यताये व्यवहारा. . भासियो मे पाई जाती है। जिसका फल चारो गतियो मे परिभ्रमण करते हुए निगोद है। प्रश्न २६-"(१) यद्यपि इस प्रकार अगीकार करने में दोनो नयों के परस्पर विरोध हैं, (२) तथापि करें क्या ? सच्चा तो दोनो नयो । का स्वरूप भासित हुआ नहीं, (३) और जिनमत मे दो नय कहे हैं, उनमें से किसी को छोड़ा नहीं जाता, (४) इसलिए भ्रम सहित दोनों।
SR No.010121
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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