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हेय बताया है, तब शुभ भावो को छोडकर अशुभ भावो मे प्रवृत्ति करने वाले को निश्चयामामी कहते है ।
प्रश्न २३ - भगवान ने शक्तिरूप क्या बात बतलाई है, जिसे निश्चयाभासी प्रगट पर्याय मे मान लेता है
?
उत्तर -- ( १ ) मैं सिद्ध समान शुद्ध हैं, (२) केवलज्ञानादि सहित हूँ, (३) द्रव्यकर्म - नोकर्म रहित हूँ, (४) परमानन्दमय हूँ, (५) जन्ममरणादि दुख मेरे नही है । यह बात भगवान ने शक्ति अपेक्षा वतलाई है, परन्तु निश्चयाभासी प्रगट पर्याय मे मान लेता है ।
[ मोक्षमार्गप्रकाशक पृष्ठ १६६] प्रश्न २४ - सातवें अधिकार के प्रारम्भ मे निश्चयाभासी की चार भूलें दीन-कौन सी बताई है ?
उत्तर - (१) वर्तमान में आत्मा की ससार पर्याय होने पर भी सिद्वदशा मानता है । ( २ ) वर्तमान मे अल्पज्ञ दशा होने पर भी केवल ज्ञान मानता है । ( ३ ) रागादि वर्तमान पर्याय में होते ही नही है । (४) विकार का उत्पन्न होना द्रव्यकर्म के कारण मानता है ।
प्रश्न २५ - शुभ भावो को बन्ध का कारण हेय वतलाया है । तब निश्चयाभासी कैसे-कैसे शुभ भावो को छोड़कर अशुभ मे प्रवर्तता ता है ?
उत्तर - ( १ ) शास्त्राभ्यास करना निरर्थक बतलाता है, (२) द्रव्यादिक के तथा गुणस्थान मार्गणा, त्रिलोकादिक के विचारो को विकल्प ठहराता है, (३) तपश्चरण करने को वृथा क्लेश करना मानता है; ( ४ ) व्रतादिक धारण करने को बन्धन मे पडना ठहराता है, (५) पूजनादि कार्यो को शुभास्रव जानकर हेय प्ररूपित करता है, इत्यादि सर्व साधनो को उठाकर प्रमादी होकर परिणमित होता है । [ मोक्षमार्गप्रकाशक पृष्ठ २०० ] प्रश्न २६ - निश्चयाभासी के जानने से पात्र भव्य जीवो को क्या जानना - मानना चाहिए ?