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________________ ( १५७ ) निश्चय कहा हो, उसकी अपेक्षा द्रव्यकर्म-नोकर्म को उपचार का नाम व्यवहार कहा जाता है। । प्रश्न ११-(१) शास्त्रो मे कहीं विकारी भावो को यथार्थ का नाम निश्चय, कहीं शुद्ध भावो को यथार्थ का नाम निश्चय तथा कहीं त्रिकाली ज्ञायक स्वभाव को यथार्थ का नाम निश्चय कहा है और (२) फहीं द्रव्यकर्म नोकर्म को उपचार का नाम व्यवहार, कहीं शुभ भांवो को उपचार का नाम व्यवहार तथा कहीं शुद्ध भावो को उपचार का नाम व्यवहार कहा है। इससे तो हमको भ्रान्ति होती है कि कियको निश्चय कहे और किसको व्यवहार कहे ? उत्तर-अरे भाई । यह भ्रान्ति मिटाने के लिए ही किस अपेक्षा यथार्थ का नाम निश्चय कहा है और किस अपेक्षा उपचार का नाम व्यवहार कहा है यह मर्म समझ ले तो मिथ्यात्वादि का अभाव होकर धर्म की प्राप्ति हो जावे। प्रश्न १२-जीव के विकारी भावो को यथार्थ का नाम निश्चय क्यो कहा है ? उत्तर-पर्याय मे दोप अपने अपराध मे है, द्रव्यकर्म-नोकर्म के कारण नही है-इसका ज्ञान कराने के लिये शास्त्रो मे विकारी भावो को यथार्थ का नाम निश्चय कहा है। प्रश्न १३-निर्मल शुद्ध परिणति को यथार्थ का नाम निश्चय क्यों कहा है ? उत्तर-एक मात्र प्रगट करने योग्य है-इसलिए निर्मल शुद्ध पणिति को यथार्थ का नाम निश्चय कहा है। प्रश्न १४-अखण्ड त्रिकाली ज्ञायक स्वभाव को यथार्थ का नाम निश्चय श्यो कहा है ? उत्तर-एक मात्र आश्रय करने योग्य की अपेक्षा अखण्ड त्रिकाली ज्ञायक स्वभाव को यथार्थ का नाम निश्चय कहा है क्योकि इसी के आश्रय से धर्म की प्राप्ति, वृद्धि और पूर्णता होती है।
SR No.010121
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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