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( १५८ ) प्रश्न १५-द्रव्यकर्म-नोकर्म को उपचार का नाम व्यवहार क्यो 'कहा है ?
उत्तर-जब-जब विभाव-भाव उत्पन्न होते हैं तब-तव द्रव्यकर्म नोकर्म निमित्त होता है-इस अपेक्षा द्रव्यकर्म-नोकर्म को उपचार का नाम व्यवहार कहा है।
प्रश्न १६-भूमिकानुसार शुभ भावो को उपचार का नाम व्यवहार क्यो कहा है ?
उत्तर-मोक्षमार्ग मे शुद्धि अश के साथ किस-किस प्रकार का राग होता है अन्य प्रकार का राग नही होता है । यह ज्ञान कराने के लिए भूमिकानुसार शुभ भावो को उपचार का नाम व्यवहार कहा है।
प्रश्न १७-निर्मल शुद्ध परिणति को उपचार का नाम व्यवहार क्यो कहा है ?
उत्तर-अनादिअनन्त न होने की अपेक्षा से तथा आश्रय करने योग्य न होने की अपेक्षा से निर्मल शुद्ध परिणति को उपचार का नाम व्यवहार कहा है।
प्रश्न १८-"निर्मल शुद्ध परिणति-यथार्थ का नाम निश्चय और भूमिकानुसार शुभ भावो को उपचार का नाम व्यवहार" इस बोल को चौथे, पाचवें क्षोर छठवें गुणस्थानो में लगाकर बताओ?
उत्तर-(अ) चौथे गुणस्थान मे श्रद्धा गुण की शुद्ध पर्याय प्रगटी साथ मे अनन्तानुवन्धी के अभाव म्वरूप स्वरूपाचरण चारित्र प्रगटा सो निश्चय सम्यकदर्शन-यथार्थ का नाम निश्चय है। सच्चे देव-गुरुशास्त्र का राग तथा सात तत्त्वो की भेदरूप श्रद्धा वध का कारण होने पर भी सम्यग्दर्शन का आरोप करना-उपचार का नाम व्यवहार है। (आ) पाँचवे गुणस्थान मे दो चौकडी कषाय के अभावरूप देशचारित्ररूप निर्मल शुद्ध परिणति, निश्चय श्रावकपना-यथार्थ का नाम निश्चय है। वारह अणुव्रतादि का राग, वन्धरूप होने पर भी श्रावकपने का आरोप करना-उपचार का नाम व्यवहार है। (इ) छठवे