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को जानते ही नही । मात्र अन्य देवादि को मानना ही गृहीत मिथ्यात्व का स्वरूप नही है | सच्चे देव, गुरु, शास्त्र की श्रद्धा बाह्य मे भी यथार्थ व्यवहार जानकर करना चाहिए | सच्चे व्यवहार को जाने बिना कोई देवादि की श्रद्धा करे, तो वह गृहीत मिथ्यादृष्टि है । प्रश्न ७ - ( १ ) स्थूल मिध्यात्व और (२) सूक्ष्म मिथ्यात्व क्या है ?
उत्तर - (१) देव- गुरु-शास्त्र के विषय मे भूल स्थूल मिथ्यात्व है । ( २ ) प्रयोजन भूत सात तत्त्वो मे विपरीतता, निश्चय व्यवहार मे विपरीतता और चारो अनुयोगो की कथन पद्धति का पता न होनायह सूक्ष्म मिथ्यात्व है ।
प्रश्न ८-जिनाज्ञा फिस अपेक्षा से है - इसका ज्ञान करने के लिये क्या जानना श्रावश्यक है ?
उत्तर -- निश्चय व्यवहार का ज्ञान आवश्यक है, क्योकि जिनागम मे निश्चय व्यवहार रूप वर्णन है ।
( १ ) निश्वय व्यवहार का स्पष्टीकरण
प्रश्न -- निश्चय व्यवहार का लक्षण क्या है ?
उत्तर-- यथार्थ ( वास्तव ) का नाम निश्चय है, उपचार (आरोप) का नाम व्यवहार है ।
प्रश्न १० -- यथार्थ का नाम निश्चय; उपचार का नाम व्यवहार; को किस-किस प्रकार जानना चाहिए
उत्तर - (अ) जहाँ अखण्ड त्रिकाली ज्ञायक स्वभाव को यथार्थ का नाम निश्चय कहा हो, वहाँ उसकी अपेक्षा निर्मल शुद्ध परिणति (पर्याय) को उपचार का नाम व्यवहार कहा जाता है | ( आ ) जहाँ निर्मल शुद्ध परिणति को यथार्थ का नाम निश्चय कहा हो, उसकी अपेक्षा वहाँ भूमिकानुसार शुभ भावो को उपचार का नाम व्यवहार कहा जाता है । (इ) जहाँ जीव के विकारी भावो को यथार्थ का नाम