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मानते हैं । ( ३ ) निरन्तर शास्त्रो का अभ्यास करते हैं । ( ४ ) सच्चे देव गुरु और सच्चे शास्त्रो को ही मानते हैं अन्य को नही मानते हैं, फिर भी उनके मिथ्यात्व का अभाव नही होता - ऐसे दिगम्बर धर्मियो के मिथ्यात्वादि के अभाव और सम्यक्त्वादि की प्राप्ति के निमित्त सातवाँ अधिकार लिखने का विकल्प हेय बुद्धि से आया है ।
प्रश्न ३ - सातवाँ अधिकार मात्र दिगम्बर धर्मियो के निमित्त है, अन्य के लिए नहीं । यह बात आपने कहाँ से निकाली ?
उत्तर - पाँचवे अधिकार मे श्वेताम्बर, मुंहपट्टी आदि को अन्यमतावलम्बी कहा है | [ मोक्षमार्गप्रकाशक पृ० १५८ ] दोहे से क्या बतलाया है ?
प्रश्न ४ – सातवें अधिकार के उत्तर - इस भवरूपी वृक्ष का मूल एक मात्र मिथ्यात्व भाव है । उसको निर्मूल करके मोक्ष का उपाय करना चाहिए, क्योकि मिथ्यात्व भाव सात व्यसनो से भी भयकर महा पाप है ।
प्रश्न ५ - जो जीव दिगम्बर धर्मी है, जिन आज्ञा को मानते हैं, निरन्तर शास्त्रो का अभ्यास करते हैं, राच्चे देवादि को ही मानते हैं - फिर भी उनके मिथ्यात्वादि का अभाव क्यो नहीं होता है ?
उत्तर- जिन आज्ञा किस अपेक्षा से है, निश्चय व्यवहार का स्वरूप कैसा है, सच्चे देवादि क्या कहते हैं— आदि बातो का यथार्थ ज्ञान न होने से मिथ्यात्वादि का अभाव नही होता है ।
प्रश्न ६ - हम दिगम्वर धर्मी अन्य कुगुरू, कुदेव, कुधर्म को मानते ही नहीं हैं क्योकि हम वीतरागी प्रतिमा को पूजते हैं, २८ मूलगुण धारी नग्न भावलिंगी मुनि को पूजते हैं और उनके कहे हुए सच्चे शास्त्रों का अभ्यास करते हैं तो हम किस प्रकार निय्यादृष्टि हैं ?
उत्तर – सत्तास्वरूप मे प० भागचन्द्र छाजेड ने कहा है कि--- दिगम्बर जैन कहते हैं कि हम तो सच्चे देवादि को मानते हैं इसलिए हमारा गृहीत मिथ्यात्व तो छूट गया है । तो उनसे कहते है कि नही. तुम्हारा गृहीत मिथ्यात्व नही छूटा है, क्योकि तुम गृहीत मि