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( १५४ ) हार से भी धर्म होता है यह अनेकान्त नही, प्रत्युत एकान्त है । (२) स्वभाव से लाभ है और कोई देव शास्त्र-गुरु भी लाभ करा देते हैं यो मानने वाला दो तत्वो को एक मानता है, अर्थात् वह एकान्तवादी है। (३) यद्यपि व्यवहार और निश्चय दोनो नय हैं, परन्तु उनमे से एक व्यवहार को मात्र 'है' यो मानकर उसका आश्रय छोडना और दूसरे निश्चय को आदरणीय मानकर उसका आश्रय लेना, यह अनेकान्त है।
प्रकरण छठवां निश्चय-व्यवहारनयाभाषावलम्बी का स्वरूप [मोक्षमार्ग प्रकाशक पृष्ठ २४८ से २५७ के अनुसार]
केऊ नर निहचै करि आतम को शुद्धिमान भये हैं स्वछन्द न पिछाने निज शुद्धता ।।१।। केऊ व्यवहार दान शील तप भाव ही को आतम को हित जान छाडत न मुद्धाता ॥२॥ केऊ नर व्यवहारनय निहचै के मारग भिन्न-भिन्न जान यह बात करे उद्धता ॥३॥ जब जाने निहचै के भेद व्यवहार सब कारन को उपचार माने तब बुद्धता ॥४॥ इस भव तरू का मूल इक जानहु मिथ्या भाव
ताको करि निर्म ल अब, करिए मोक्ष उपाव ॥५॥ प्रश्न १-निश्चय-व्यवहार को समझने-समझाने की क्या आव. श्यकता है?
उत्तर-दुःख के अभाव और सुख की प्राप्ति के निमित्त निश्चय व्यवहार को समझने-समझाने की आवश्यकता है।
प्रश्न २-सातवाँ अधिकार लिखने का विकल्प किसके निमित्त हेय बुद्धि से आया है ?
उत्तर-(१) जो जीव दिगम्वर धर्मी है । (२) जिन आज्ञा को