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वह मोक्षमार्ग है-उसमे राग का अवलम्बन नही है । (ओ) वीतराग भाव वह मोक्षमार्ग है- उसमे राग का अवलम्वन नही है ।
प्रश्न- तीन बातें कौन-कौन सी याद रखनी चाहिए ?
( १ ) अपनी आत्मा के अलावा पर द्रव्यो से तो किसी भी प्रकार का सम्बन्ध नही है । ( २ ) अपनी पर्याय मे एक समय की भूल है । ( 3 ) भूल रहित स्वभाव मै हूँ, ऐसा जानकर भूतार्थ के आश्रय से अपने मे सम्यग्दर्शन-ज्ञान- चारित्र की प्राप्ति करना ही प्रत्येक जीव का परम कर्तव्य है ।
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प्रश्न- ११ - आत्महित के लिए प्रयोजनभूत कार्य क्या-क्या है उत्तर- ( १ ) प्रत्येक द्रव्य स्वतन्त्र है । उसका चतुष्टय स्वतन्त्र है इसलिए पर को अपना मानना छोड । (२) दूसरे, जब वस्तु का परिणमन स्वतन्त्र है, तो तू उसमे दया करेगा ? अगर वह तेरे द्वारा की हुयी परिणमेगी, तो उसका परिणमन स्वभाव व्यर्थ हो जायेगा और जो शक्ति जिसमे है ही नहीं, वह दूसरा देगा भी कहा से ? इसलिए मैं इसका ऐसा परिणमन करा दूं या यह यूं परिणमे तो ठीक । यह पर की कर्तृत्व बुद्धि छोड । ( ३ ) तीसरे जब एक द्रव्य दूसरे द्रव्य को छू भी नहीं सकता, सो भोगना क्या ? अत यह जो पर के भोग की चाह है इसे छोड । यह तो नास्ति का उपदेश है, किन्तु इस कार्य की सिद्धि 'अस्ति' से होगी और वह इस प्रकार है कि जैसे कि तुझे मालूम है तेरी आत्मा मे दो स्वभाव हैं एक त्रिकाली स्वभाव अवस्थित, दूमरा परिणाम पर्याय धर्म । अज्ञानी जगत तो अनादि से अपने को पर्याय बुद्धि से देखकर उसी मे रत है । तू तो ज्ञानी बनना चाहता है । अपने को त्रिकाली स्वभावरूप समझ । वैसा ही अपने को देखने का अभ्यास कर। यह जो तेरा उपयोग पर मे भटक रहा है । उसको पर की ओर न जाने दे, स्वभाव की ओर इसे मोड । जहाँ तेरी पर्याय ने पर के बजाये अपने घर को पकड़ा और निज समुद्र मे मिली तो स्वभावपर्याय प्रगट हुई। बस उस स्वभाव पर्याय प्रगट होने का नाम ही