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________________ हत द्रव्य ( १४२ ) (ऊ) शुभोपयोग पुण्यभावो से कभी भी मोक्ष सुख की प्राप्ति नही होती, क्योकि व प्रशस्तराग है । वह (प्रगस्त राग) स्वर्ग सुख का कारण है और मोक्ष सुख का कारण वीतराग भाव है इसलिए कारणो मे भी भेद है । परन्तु अज्ञानियो को प्रतिभासित नहीं होता। [मोक्षमार्ग प्रकाशक पृष्ठ २३४] (ए) सम्पूर्णतया कर्ममल कलझ रहित, शरीर रहित आत्मा के आत्यन्तिक स्वभाविक-अचिन्त्य-अद्भूत तथा अनुपम-सकल-विमलकेवलज्ञानादित अनन्त गुणो का स्थानरूप जो अवस्थान्तर है वही मोक्ष [वृहत द्रव्य संग्रह गाथा ३७ की टीका पृ० १५३] (ऐ) मुन्त आत्मा के सुख का वर्णन आत्मा उपादान कारण से सिद्ध, स्वय अतिशय युक्त, वाधा से शून्य, विशाल, वृद्धि-ह्रास से रहित, विपयो से रहित, प्रतिद्वन्द (प्रतिपक्षता) से रहित, अन्य द्रव्यो से निरपेक्ष, उपमा रहित, अपार, नित्य, सर्वदा उत्कृप्ट तथा अनन्त सारभूत परमसुख उन सिद्धो को होता है। [वहन द्रव्य संग्रह गा० ३७ की टीका पृष्ठ १५३] तथा [पूज्यपाद कृत सिद भक्ति गा० ७] (ओ) प्रश्न-कौनसा जीव मोक्ष है ? उत्तर-सवर से युक्त है ऐसा जीव सर्व कर्म की निर्जरा करता हुआ वेदनीय और आयु रहित होकर भव को छोडता है इसलिए वह जीव मोक्ष है। [पचास्तिकाय मूल गाथा १५३] वर्णन अतिशय हिन्द (ग्रा (६) पुण्य अर्थात् शुभभाव (अ) जिनशासन मे जिनेन्द्रदेव ने ऐसा कहा है कि पूजा आदिक (भगवान की भक्ति, वन्दना, शास्त्र स्वाध्याय) विपय व्रत सहित हो, तो पुण्य हो और मोह-क्षोभ रहित आत्मा का परिणाम धर्म है । (पुण्य धर्म का विरोधी है पुण्य से धर्म नहीं होता, किन्तु आस्रव-वन्धरूप अधर्म होता है ऐसा स्पष्ट बताया है)। [भावपाहुड गा० ८३]
SR No.010121
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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