________________
( १३५ )
अवस्था का निश्चय करके प० बनारसीदास जी हाथ जोड़कर नमस्कार करते हैं
+
भेद विज्ञान जग्यो जिनके घट, शीतल चित्त भयो जिम चन्दन । केलि करें शिव मारग में जगमाहिं जिनेश्वर के लघुनन्दन ॥ सत्य स्वरूप सदा जिनके, प्रगट्यो भवदात मिथ्यात्व निकन्दन । शान्त दशा तिनको पहिचान, करें कर जोरि वनारसि बन्दन ॥ [समयसार नाटक से ]
(ऐ) सम्यग्दृष्टि को चारित्र मोहवश लेश भी सयम ना होय, तो भी सुरनाथ पूजते है । [छहढाला ] [ रत्नकरण्ड श्रावकाचार श्लोक ३६, ३७, ३८, ३६, ४०-४१
देखो ]
(ओ) सन्मार्ग ग्रहण करता है वह ही सम्यक्त्व प्राप्त करता है, सन्मार्ग का अर्थ मोक्षमार्ग होता है । [घवल पुस्तक १] इस प्रकार करणानुयोग, द्रव्यानुयोग, चरणानुयोग का मेल जानना चाहिए, क्योकि चारो अनुयोगो मे एक ही बात है । सम्यग्दर्शन बिना धर्म की शुरूआत नही होती है और सम्यग्दर्शन के बिना ज्ञान चारित्र नही होता है । इसलिये पात्र जीव को प्रथम सम्यग्दर्शन प्राप्त करना है |
(२) मनाक ( अल्प) चारित्र धर्म
प्रश्न - ( अ ) चतुर्थ गुणस्थान मे अल्पचारित्र की प्राप्ति होती है या नहीं
?
उत्तर - होती है, क्योकि चौथे गुणस्थान मे मिथ्याचारित्र का अभाव होता है और उत्पादरूप आशिक शुद्धि प्रगट होती है, ऐसा सिद्ध होता है ।
( आ ) " ऐसे दर्शन मोहनीय के अभावते सत्यार्थ श्रद्धान, सत्यार्थ