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(१२) प्रश्न- सातवें गुणस्थान से लेकर बाद के गुणस्थानो में व्यवहार सम्यक्त्व क्यों नहीं होता ?
उत्तर - व्यवहार सम्यक्त्व शुभराग है, अशुद्धता है। सातवे गुणस्थान से आगे के गुणस्थानो मे निर्विकल्पता रहती हैं । अबुद्धिपूर्वक राग १० वे गुणस्थान तक रहता है। इसलिए सातवे गुणस्थान से आगेआगे के गुणस्थानो मे चारित्र गुण की पर्याय में शुद्धता बढती जाती है, अशुद्धता का अभाव होता जाता है। इसलिए सातवें से लेकर आगे के गुणस्थानो मे व्यवहार सम्यक्त्व नही है । निश्चय सम्यक्त्व चौथे से सिद्ध तक बराबर एक समान रहता है ।
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(१३) बहिरात्मा - अन्तरात्मा का स्वरूप
त्रिकाली शायक परम पारिणामिक जीवतत्व को आत्मा कहते हैं । पर्याय की अपेक्षा बहिरात्मा, अन्तरात्मा, परमात्मा का भेद है । इन तीन अवस्थाओ से रहित द्रव्य रहता है । इस प्रकार द्रव्य और पर्याय रूप जीव पदार्थ को जानना चाहिए ।
प्रन - मोक्ष का क्या कारण है ?
उत्तर - (१) मिथ्यात्व मोह-राग-द्वेषरूप बहिरात्म अवस्था है । वह तो अशुद्ध हैं दुखरूप है वह तो मोक्ष का कारण नही है । (२) मोक्ष अवस्था तो फलस्वरूप है इसलिए यह भी मोक्ष का कारण नही है । ( ३ ) बहिरात्मा अवस्था तथा मोक्षपूर्ण अवस्था से भिन्न ( अलग) जो अन्तरात्म अवस्था है वह मिथ्यात्व, रागद्वेष, मोह रहित होने के कारण शुद्ध है वह अन्तरात्म अवस्था सवर-निर्जरा अवस्था मोक्ष का कारण है ।
चौथे गुणस्थान से जितनी शुद्धि है वह मोक्ष का कारण है, जो अशुद्धि है वह बन्ध का कारण है मोक्ष का कारण नही है ।
[ पुरुषार्थसिद्धि उपाय गा० २१२ - २१३- २१४ मे देखो, उसमें जो शुद्धि अश है वह मोक्षमार्ग है वह मोक्ष का कारण है और अशुद्धि अश है, बन्धरूप है, हेय त्याज्य है । ]