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________________ ( ११४ ) प्रकरण तीसरा सम्यक्त्व की व्याख्या (१)(क)तत्वार्थ श्रद्धान का नाम सम्यग्दर्शन है । (ख)अथवा तत्वो मे रुचि होना ही सम्यक्त्व है। (ग) अथवा प्रशम, सवेग, अनुकम्पा और आस्तिक्य की अभिव्यक्ति ही जिसका लक्षण है वही सम्यक्त्व है। (धवल पुस्तक ७ पृष्ठ ७, धवल पुस्तक १० पृष्ठ ११५) (1) प्रशम अनन्तानुबधी कषाय के अभावपूर्वक बाकी की कपायो का अशरूप से मद होना [पचाध्यायी गाथा ४२८] (II) सवेग-ससार से भय और धर्म तथा धर्म के कार्यो मे परम उत्साह होना साधर्मी और पचपरमेष्टियो मे प्रीति । (III) अनुकम्पा=प्राणी मात्र पर दया भाव । (IV) आस्तिक्य=पुण्य-पाप तथा परमात्मा का विश्वास । (२) सम्यक्त्व की उत्पत्ति ही मोक्ष का कारण है-- वह गुणश्रेणी रूप निर्जरा का कारण है । बन्ध के कारण का प्रतिपक्षी है। [धवल पुस्तक ७ पृ० १४] (३) सम्यक्त्व का प्रतिपक्षी मिथ्यात्व भाव, अत्यन्त अप्रशस्त है, और उसके निमित्त से बँधने वाला मिथ्यात्व कर्म अत्यन्त अप्रशस्त (४) चौथे गुणस्थान से चौदहवें गुणस्थान तक सर्व जीवो को सम्यक्त्व समान है। [धवल पुस्तक ७ पृ० २२-२३, १०७] (५) सम्यग्दर्शन में जीव के गुण स्वरूप श्रद्धान की उत्पति पायो जाती है उससे आत्मस्वरूप की प्राप्ति होती है। [धवल पुस्तक ५ पृ० २०८, २०६ तथा पृ० २३५] (६) क्षायिक सम्यग्दर्शन की अपेक्षा क्षायोपशमिक वेदक सम्यक्त्व की प्राप्ति सुलभ है। [धवल पुस्तक ५ पृ० २६४] (७) मिथ्यात्व, अविरति, प्रमादि आदि को जीवत्व नही। मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद आदि मे मगलपना सिद्ध नही हो सकता, क्योकि उसमे जीवत्व का अभाव है। मगल तो जीव ही है और वह जीव केवलज्ञानादि अनन्त धर्मात्मक है। [धवल पुस्तक १ पृ० ३६]
SR No.010121
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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