________________
( १०७ ) मिथ्यादृष्टियो के भी भावसयम रहित द्रव्यसयम होना सम्भव होता है । वह (द्रव्यसयम) सम्यक्त्व और सयम से रहित होता है द्रव्य सयम ने नव ग्रवैयको में उत्पन्न हो सकता है।
[धवल पुस्तक ६ पृष्ठ ४६५-४७३]
[धवल पुस्तक १ पृष्ठ १७५ तथा ३७८] (घ) सिद्ध भगवान का सयम ।
उनके बुद्धिपूर्वक निवृत्ति का अभाव होने से वह सयत, सयतासयत और असयतरूप भो नही है क्योकि उनको सम्पूर्ण पापरूप क्रियाये नष्ट हो चुकी है। [धवल पुस्तक १ पृष्ठ ३७८]
त्रण मूढ़ता १ देवमूढता, २ गुरुमूढता, ३ लोकमूढता ।
(अ) आप्त, आगम आर पदार्थों में जिस जीव को श्रद्धा उत्पन्न नहीं हुई तथा उसका चित्त त्रण मूढताओ से व्याप्त है । जो त्रण मूढता से व्याप्त होय उसे सयम की उत्पत्ति नही हो सकती है।
[धवल पुस्तक १ पृष्ठ १७७] (आ) त्रण मूढताओ से रहित सम्यग्दर्शनरूप उन्नत तिलक मे विराजमान है।
[धवल पुस्तक ५ पप्ठ ६] (इ) त्रण मूढताओ से रहित अमूढदृष्टि कहलाता है। उसकी व्याख्या-क्योकि सम्यग्दृष्टि टकोत्कीर्ण एक ज्ञायक भावमयता के कारण सभी भावो मे मोह का अभाव होने से, अमूढ दृष्टि है।
[समयसार गा० २३२ की टीका से] (ई) अब तीन प्रकार मूढता है, वे सम्यक्त्व के घातक है गाते तीन प्रकार की मूढता का स्वरूप जानि सम्यग्दर्शन को शुद्ध करना योग्य है।
[रत्नकरण्ड श्रावकाचार श्लोक २२ के ऊपर हैडिंग पृष्ठ ३२] प्रश्न-लोकमूढता क्या है ?