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( १०६ ) उत्पन्न करने की शक्ति हो सके। इसलिए कही पर भी अन्तरग कारणं से ही कार्य की उत्पत्ति होती है—ऐसा निश्चय करना।
[धवल पुस्तक ६ पृष्ठ १६४] (अ) मिथ्यात्व तथा कषाय कर्मो की स्थिति मे अन्तर होने का कारण।
शका-मोहनीयत्व की अपेक्षा समान होने से मिथ्यात्व कर्म को स्थिति के समान ही कषायो की स्थिति क्यो नही हुई ?
समाधान-नही, क्योकि सम्यक्त्व और चारित्र के भेद से भेद को प्राप्त हुए कर्मो के भी समानता होने का विरोध है ।
[धवल पुस्तक ६ पृष्ठ १६२] (क) सयम के कारण भूत सम्यग्दर्शन की अपेक्षा तो इस गुणस्थान मे क्षायोपशमिक, क्षायिक और औपशमिक भाव निमित्तक सम्यग्दर्शन होता है।
[धवल पुस्तक १ पृष्ठ १७७] (ख) मिथ्यादृष्टि जीवो को, सयत या देशसयत होय ही नही। प्रश्न-कितने ही अज्ञानी संयमी जीव देखने में आते हैं ?
उत्तर-सम्यग्दर्शन के विना सयत और प्रत्याख्यान (चारित्र) होता ही नहीं। [धवल पुस्तक १ पृष्ठ ३७८ तथा पृष्ठ १७५] निश्चय चारित्र का कारणभूत ज्ञान-श्रद्धान है।
[समयसार गा० २७३ की टीका से] (ग) भावसयम-द्रव्य सयम ।
सयमन करने को सयम कहते है। सयम का इस प्रकार का लक्षण करने पर द्रव्यसयम अर्थात् भावचारित्र शून्य द्रव्यचारित्र सयम नही हो सकता, क्योकि सयम शब्द मे 'स' शब्द से उसका निराकरण हो जाता है। 'सम्' उपसर्ग सम्यक् शब्दवाची है। इसमे सम्यग्दर्शन
और सम्यग्ज्ञान पूर्वक 'यता' अर्थात् अन्तरग ओर बहिरग आत्रवो से विरत है उसे सयम कहते है।
[धवल पुस्तक १ पृष्ठ १४४ तथा पृष्ठ ३६६]