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________________ । १०४ ) चारित्र को आवरण करने वाला है इसलिए उसके होने पर भी जीव इस गुणस्थान को प्राप्त होता है। (आधार धवल पुस्तक ५ पृष्ठ २२०, २२१ मे ऊपर (अ) न० मे दे चुके हैं) कर्म का उदय होते हुए भी जो जीव का गुण खण्ड (अग) उपलब्ध रहता है वह क्षायोपशमिक भाव है । (धवल पुस्तक ५ पृष्ठ १८५) शुढात्मप्रकाशक सर्व विरति, वह श्रमण है। (प्रवचनसार गा० २५४) (इ) ५-६-७वे गुणस्थान मे श्रावक और मुनि को निश्चय स्वभावभूत चारित्र का एक अग होता है। (धवल पुस्तक ५ पृष्ठ २३३) (ई) चारित्र दो प्रकार का है, देश चारित्र और सकल चारित्र । सकल चारित्र तीन प्रकार का है, (१)क्षायोपशमिक, (२) औपशमिक, (३) क्षायिक । यह तीनो निश्चय स्वभावभूत चारित्र है। (धवल पुस्तक ६ पृष्ठ २६८) (उ) चारित्र विनाशक कषायो की अपेक्षा चारित्र मे मल को उत्पन्न करने रूप फल वाले कर्मों की महत्ता नहीं बन सकती। (धवल पुस्तक ६ पृष्ठ ४६) (ऊ) प्रत्याख्यान को सयम कहते हैं । (धवल पुस्तक ६ पृष्ठ ४३) (ए) सयमचारित्र का विनाश नही करने वाला सज्वलन कपाय को चारित्रावरण इसलिए कहने मे आता है । कषाय सयम मे मल उत्पन्न करता है, इसलिए उसे यथाख्यात चारित्र का प्रतिबन्धक कहा है । चारित्र के साथ जलना ही इसका सम्यक्पना है। (धवल पुस्तक ६ पृष्ठ ४४ ४५) (ऐ) चारित्र मोहनीय की व्याख्या-घातियाँ कर्मो को पाप कहते है। मिथ्यात्व, असयम, कषाय ये पाप की क्रिया हैं। इन पाप क्रियाओ
SR No.010121
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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