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एक-अनेक बतलाकर इनके विरोध को मेट कर वस्तु को सिद्ध करता
है ।
प्रश्न ३४ – उपादान और निमित्त में एकान्ती और अनेकान्ती की मान्यता किस प्रकार हैं
?
उत्तर- ( १ ) उपादान कुछ नही करता, केवल निमित्त ही उसे परिणमाता है, वह भी एक धर्म को मानने वाला एकान्ती है । तथा जो यह मानता है कि निमित्त की उपस्थिति ही नही होती वह भी एक धर्म का लोप करने वाला एकान्ती है (२) परन्तु जो यह मानता है कि परिणमन तो सब निरपेक्ष अपना-अपना चतुष्टय मे स्वकाल की योग्यता से करते हैं । किन्तु जहाँ आत्मा विपरीत दशा मे परिणमता है वहीं योग्य कर्म का उदयरूप निमित्त की उपस्थिति होती है । तथा जहाँ आत्मा पूर्ण स्वभावरूप परिणमता है वहाँ सम्पूर्ण कर्म का अभावरूप निमित्त होता है, वह दोनो धर्मों को मानने वाला अनेकान्त्री है ।
प्रश्न ३५ - व्यवहार निश्चय में एकान्ती और अनेकान्ती की मान्यता किस प्रकार हैं ?
उत्तर- ( १ ) जो निश्चय रत्नत्रय से अनभिज्ञ है और मात्र देवगुरु-शास्त्र की श्रद्धा को सम्यग्दर्शन, शास्त्र ज्ञान को सम्यग्ज्ञान, अणुव्रतादिक को श्रावकपना, और महाव्रतादिक को मुनिपना मानता है, वह व्यवहाराभासी एकान्ती है । जो भूमिकानुसार राग को पूर्वचर या सहचररूप से नही मानता, वह निश्चयाभासी एकान्ती है । (२) किन्तु जो मोक्षमार्ग तो निरपेक्ष शुद्ध रत्नत्रय को ही मानता है और भूमिकानुसार पूर्वचर या सहचर व्यवहार भी साधक के होता है ऐसा मानता है वह स्याद्वाद् - अनेकान्त का मर्मी अनेकान्ती है ।
प्रश्न ३६ - द्रव्य और पर्याय के विषय में एकान्ती कौन है और अनेकान्ती कौन है ? •
उत्तर -- ( १ ) जो सांख्यवत् त्रिकाली शुद्ध द्रव्य को त्रिकाल शुद्ध