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मानता है किन्तु पर्याय को नही मानता है । वह एक धर्म का लोप करने वाला एकान्ती है । तथा जो बौद्धवत् पर्याय को ही मानता है उसमे अन्वय रूप से पाया जाने वाला द्रव्य को नही मानता, वह भी एक धर्म का लोप करने वाला एकान्ती है । (२) किन्तु जो द्रव्य और पर्याय दोनो को मानता है तथा पर्याय का आश्रय छोडकर द्रव्य का ही आश्रय करता है । वह स्याद्वाद अनेकान्त का मर्मी अनेकान्ती है ।
प्रश्न ३७ - जो पर की क्रिया को अपनी मानता है वह कौन है | और प्रत्येक द्रव्य मे स्वतंत्रतया अपनी-अपनी क्रिया होती है ऐसा मानता है वह कौन है ?
उत्तर- (१) मन-वचन-काय, पर वस्तु की क्रिया का कर्ता आत्मा को मानता है वह एक पदार्थ की क्रिया का लोप करने वाला एकान्ती है । ( २ ) जो यह मानता है कि प्रत्येक पदार्थ स्वतंत्र रूप से अपनेअपने परिणाम को करता है वह स्याद्वाद - अनेकान्त का मर्मी अनेकान्ती है ।
प्रश्न ३८ - विरोध होते हुये भी विरोध वस्तु को सिद्ध करता है इसमें करुणानुयोग का दृष्टान्त देकर समझाओ ?
उत्तर - क्या अपनी मूर्खता चक्कर खिलाती है ? उत्तर - हाँ । क्या कर्म भी चक्कर खिलाता है ? उत्तर - हाँ । दोनो प्रश्नो के उत्तर मे 'ह्रीं' है, विरोध लगता है । परन्तु आत्मा अपनी मूर्खता से चक्कर काटता है यह निश्चयनय का कथन है । और कर्म चक्कर कटाता है यह व्यवहारनय का कथन है - ऐसा स्याद्वादी - अनेकान्ती जानता है क्योकि वह चारो अनुयोगो के रहस्य का मर्मी है ।
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प्रश्न ३६- क्या मुख्य गौण वस्तु के भेद हैं
उत्तर - वस्तु के भेद नही है, क्योकि मुख्य-गौण वस्तु मे विद्यमान घर्मो की अपेक्षा नही है किन्तु वक्ता की इच्छानुसार है । मुख्य गौण कथन के भेद हैं वस्तु के नही है ।