________________ ( 268 ) और स्वोपयोग मे-विपमव्याप्ति है। जिस ओर से यह व्याप्ति घट जाती है उनका तो परस्पर सहचर्य सिद्ध हो जाता है किन्तु जिस ओर से नही घटती उनका सहचर्य सिद्ध नही होता-यह इससे लाभ है। प्रश्न २६७--सम्यक्त्व और जानचेतनावरण के क्षयोपशम मे कौन सी व्याप्ति है ? उत्तर-समव्याप्ति है क्योकि सदा दोनो इकटठे रहते हैं। एक हो और दूसरा न हो--ऐसा कभी होता ही नही है। जहाँ-जहाँ सम्यक्त्व है वहाँ-वहाँ ज्ञानचेतनावरण का क्षयोपशम भी है और जहाँ-जहाँ सम्यक्त्व नहीं है वहाँ-वहाँ ज्ञानचेतनावरण का क्षयोपशम भी नहीं है तथा जहाँ-जहाँ ज्ञानचेतनावरण का क्षयोपशम है-वहाँ-वहाँ सम्यक्त्व है और जहाँ-जहाँ ज्ञानचेतनावरण का क्षयोपशम नहीं है वहाँ-वहाँ सम्यक्त्व भी नही हैं। इसलिये सम्यक्त्व का अस्तित्त्व लब्धिरूप ज्ञानचेतना के अस्तित्त्व को सिद्ध करता है / इससे जो सम्यग्दृष्टियो के ज्ञानचेतना नहीं मानते-उनका खण्डन हो जाता है। प्रश्न 268- सम्यक्त्व और उपयोगरूप ज्ञानचेतना मे कौन सी व्याप्ति है ? उत्तर-विषम व्याप्ति है क्योकि जहाँ-जहाँ स्वोपयोग है वहाँ-वहाँ तो सम्यक्त्व है पर जहां-जहाँ स्वोपयोग नही है वहाँ-वहाँ सम्यक्त्व हो -न भी हो- कोई नियम नही है। स्वोपयोग के विना भी सम्यक्त्व रहता है अथवा इसको यूँ भी कह सकते हैं कि जहाँ-जहाँ सम्यक्त्व नहीं है वहाँ-वहाँ तो स्वोपयोग भी नहीं है पर जहाँ-जहाँ सम्यक्त्व है वहाँवहाँ स्वोपयोग हो भी सकता है और नही भी हो सकता-कोई नियम नही है / इनमे एक तरफ की व्याप्ति तो है पर दूसरे तरफ का नहीं है -- इसलिए यह विषम व्याप्ति है। इससे एक तो यह सिद्ध किया जाता है कि शुद्धोपयोग सम्यग्दृष्टियो के ही होता है और दूसरे यह सिद्ध किया जाता है कि सब सम्यग्दृष्टियो के हर समय स्वोपयोग नहीं रहता।