________________ ( 267 ) वहाँ दर्शनमोह का अनुदय है और जहाँ-जहाँ सम्यक्त्व नहीं है वहाँवहाँ दर्शनमोह का अनुदय भी नही है। तथा जहाँ-जहाँ दर्शनमोह का अनुदय है वहाँ-वहाँ सम्यक्त्व है और जहाँ-जहाँ दर्शनमोह का अनुदय नही है वहाँ-वहाँ सम्यक्त्व भी नही है। इसी प्रकार सम्यग्दर्शन और ज्ञानचेतनावरण कर्म के क्षयोपशम की [अर्थात् लब्धिरूप ज्ञानचेतना की] समव्याप्ति है। इसके जानने से यह लाभ है कि एक का अस्तित्त्व दूसरे के अस्तित्त्व को और एक का नास्तित्त्व दूसरे के नास्तित्त्व को सिद्ध कर देता है। प्रश्न २६५-क्या समव्याप्ति मे एक पदार्थ दूसरे पदार्थ के आधीन है ? __उत्तर-कदापि नही। एक का परिणमन या मौजूदगी दूसरे के आधीन बिल्कुल नही है। दोनो स्वतन्त्र अपने-अपने स्वकाल की योग्यता से परिणमन करते है। व्याप्ति का यह अर्थ नही कि एक पदार्य दूसरे को लाता हो या दूसरे को उसके कारण से आना पडता हो या एक के कारण दूसरे को अपनी वैसी अवस्था करनी पडती हो-कदापि नहीं / व्याप्ति तो केवल यह बताती है कि स्वत ऐसा प्राकृतिक नियम है कि दोनो साथ रहते है-एक हो और दूसरा न हो-ऐसा कदापि नहीं होता। बस इससे अधिक और व्याप्ति से कुछ सिद्ध नहीं किया जाता। प्रश्न २६६-विषमव्याप्ति किसे कहते हैं ? / उत्तर-एक तरफा के सहचर्य नियम को विपम व्याप्ति कहते है [अथात् जो व्याप्ति एक तरफा तो पाई जावे और दूसरी तरफा न पाई जावे उसे विषम व्याप्ति कहते है] जैसे जहाँ-जहाँ धम है वहाँ-वहाँ आग है यह तो घट गया पर जहाँ-जहाँ धूम नही है वहाँ-वहाँ आग भी नहा है यह नही घटा क्योकि बिना धूम भी आग होती है। इसलिये घूम आर अग्नि मे समव्याप्ति नही किन्तु विपम व्याप्ति है। इसो प्रकार सम्यग्दर्शन और स्वोपयोग मे, राग और ज्ञानावरण मे, लब्धि