________________ ( 206 ) सामान्य न रहने से नहीं बनता है। इस प्रकार तत्त्व का भी अभाव ठहरता है अर्थात कर्ता कर्म क्या कोई भी कारक नही बनता है। (426) प्रश्न ११०-सर्वथा अनित्य पक्ष में क्या हानि है ? उत्तर-(१) सत् को सर्वथा अनित्य मानने वालो के यहाँ सत तो पहले ही नाग हो जायेगा फिर प्रमाण और प्रमाण का फल नही बनेगा। (426) (2) जिस समय वे सत् को अनित्य सिद्ध करने के लिए अनुमान प्रयोग में यह प्रतिज्ञा बोलेगे कि "जो सत् है वह अनित्य है" तो यह कहना तो स्वय उनकी पकड का कारण हो जायेगा क्योकि सत् तो है ही नही फिर 'जो सत् है वह" यह शब्द कैसा ? (430) (3) सत् को नही मानने वाले उसका अभाव कैसे सिद्ध करेगे। (4) सत् को निन्य सिद्ध करने मे जो प्रत्यभिज्ञान प्रमाण है वह क्षणिक एकान्त का बाधक है / (432) (5) सामान्य (अन्वय) के अभाव मे विशेप (व्यतिरेक) तो गधे के सीगवत् है / वस्तु के अभाव मे परिणाम किसका। ___'एक-अनेक युगल' (4) प्रश्न १११--सत् एक है इसमें क्या युक्ति है ? उत्तर-द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से और भाव से गुण पर्याय या .16 व्यय ध्रीव्य रूप अशो का अभिन्न प्रदेशी होने से सत् एक है पति क्योकि वह निरश देश है इसलिए अखण्ड सामान्य की अपेक्षा सत् एक है। (436, 437) प्रश्न ११२-द्रव्य से सत् एक कैसे है ? उत्तर-क्योकि वह गुण पर्यायो का एक तन्मय पिण्ड है इसलिए