________________ ( 205 ) उत्तर--स्वभाव दृष्टि को अक्रमवर्ती कहते हैं क्योकि वह सदा एकरूप है जैसे जीव और परिणाम-अवस्था-पर्याय दृष्टि को क्रमवर्ती कहते हैं क्योकि अनादि से अनन्त काल तक क्रमबद्ध परिणमन करना भी वस्तु का स्वभाव है जैसे मनुष्य देव / (417) प्रश्न १०५-परिणाम के नामान्तर बताओ? उत्तर-परिणाम, पर्याय, अवस्था, दशा, परिणमन, विक्रिया, कार्य, क्रम, परिणति, भाव। प्रश्न १०६-सर्वथा नित्य पक्ष में क्या हानि है ? उत्तर--सत् को सर्वथा नित्य मानने से विक्रिया (परिणति) का अभाव हो जायेगा और उसके अभाव मे तत्त्व क्रिया, फल, कारक, कारण, कार्य कुछ भी नहीं बनेगा। प्रश्न १०७-तत्त्व किस प्रकार नहीं बनेगा? उत्तर-परिणाम सत की अवस्था है और उसका आप अभाव मानते हो तो परिणाम के अभाव मे परिणामी का अभाव स्वय सिद्ध है। व्यतिरेक के अभाव मे अन्वय अपनी रक्षा नहीं कर सकता। इस प्रकार तत्त्व का अभाव हो जायगा। (424) प्रश्न १०८---मिया फल आदि किस प्रकार नहीं बनेगा ? उत्तर-आप तो वस्तु को कूटस्थ नित्य मानते हैं। क्रिया, फल, कार्य आदि तो सब पर्याय मे होते हैं। पर्याय की आप नास्ति मानते हैं, अत ये भी नही बनते। (423) प्रश्न १०६-तत्त्व और क्रिया दोनों कैसे नहीं बनते ? उत्तर-मोक्ष का साधन जो सम्यग्दर्शनादि शुद्ध भाव हैं वे परिणाम हैं और उनका फल जो मोक्ष है वह भी निराकुल सुख रूप पडि णाम है। ये दोनो साधन और साध्य रूप भाव हैं। परिणाम हैं। णाम आप मानते नही हैं। इस प्रकार तो क्रिया का अभाव हुआ. इन दोनो भावो का कर्ता-साधक आत्मद्रव्य है वह विशेष के,