________________ ( 161 ) है और पर्याय मुझ जीवतत्व को स्पर्शती नहीं है। (4) द्रव्य का वेदन नही होता है, वेदन तो पर्याय का है। प्रश्न ५६-ज्ञानियो को पर की महिमा कैसे उड़ जाती है ? उत्तर-जैसे-गाय-भैंस आदि जानवरो का गोबर मिलने पर गरीब स्त्रियाँ प्रसन्न हो जाती हैं और धन-वैभव मिलने पर सेठ प्रसन्न हो जाता है। परन्तु गोबर और धनादि मे जरा भी फेर नही है / उसी प्रकार ज्ञानी बनते ही अपने चैतन्य निधान को देखते ही बाहर के कहे जाने वाले निधानो की और विकारी भावो की महिमा उड जाती है। प्रश्न ५७---ज्ञानी दूसरे को अपना नाथ क्यो नहीं बनाता है ? उत्तर-जिसे अपने चैतन्य स्वभाव के साथ प्रेम है ऐसा सम्यग्दृष्टि पच परमेष्टी के साथ भी प्रेम गाठ बाधता नहीं है, क्योकि अपनी आत्मा मे अनन्ती सिद्धदशा विराज रही है। अर्थात् अनन्त परमात्मा-दशा ज्ञानी के ध्रुव पद मे पडी है ऐसा ज्ञानी आत्मा दूसरे को अपना नाथ क्यो वनावे ? कभी भी न बनावे / प्रश्न ५८-देव-गुरु-शास्त्र क्या बताते हैं ? उत्तर-तुझे अपनी महिमा आवे तो उसमे हमारी महिमा आ जाती है और तुझे अपनी महिमा नही आती तो तुझे हमारी भी महिमा नही आ सकती है। प्रश्न ५६-जैन का सच्चा संस्कार क्या है ? उत्तर--राग से भिन्न चैतन्य को मानना वह ही जैन का सच्चा, सस्कार है। प्रश्न ६०-चक्रवर्ती की सम्पदा, इन्द्र सरीखे भोग। काग बीट सम गिनत है, सम्यग्दृष्टि लोग / / यह दोहा कहाँ लिखा है ? उत्तर-शीशमहल मन्दिर इन्दौर मे लिखा है। प्रश्न ६१-नियमसार मे कैसा द्रव्य आश्रय करने योग्य है।- यह बताया है ?