________________ ( 162 ) उत्तर-(१) केवलज्ञानादिपूर्ण निर्मल पर्याय / (2) मतिश्रुतज्ञानादि अपूर्ण पर्याय / (3) अगुरुलघुत्व की पर्याय / (4) नर-नारकादि पर्याय / पर्याय सहित होने पर भी इन चारो प्रकार की पर्यायों से रहित ऐसे शुद्ध जीव तत्व को-ज्ञायकतत्व को सकल अर्थ की सिद्धि के लिए अर्थात् मोक्ष की सिद्धि के लिए नमस्कार करता हूँ-भजता हूँ अर्थात् शुद्ध जीव तत्व मे एकाग्र होता हूँ। प्रश्न ६२-परमात्मप्रकाश अध्याय प्रथम श्लोक 43 मे कैसा द्रव्य आश्रय करने योग्य बताया है ? उत्तर- "यद्यपि पर्यायाथिकनय कर उत्पाद-व्यय कर सहित है / तो भी द्रव्याथिकनय कर उत्पाद-व्यय रहित है, सदा ध्रव (अविनाशी) ही है। वही परमात्मा निर्विकल्प समाधि के बल से तीर्थंकर देवो ने देह मे भी देख लिया है। प्रश्न ६३-परमात्मप्रकाश अध्याय प्रथम सातवें श्लोक की टीका में कैसा द्रव्य आश्रय करने योग्य बताया है ? उत्तर-"अनुपचरित अर्थात् जो उपचरित नहीं है, इसीसे अनादि सम्बन्ध है। परन्तु असदभूत (मिथ्या) है ऐसा व्यवहारनयकर द्रव्यकर्म नोकर्म का सम्बन्ध होता है उससे रहित है और अशुद्ध निश्चयकर रागादि का सम्बन्ध है। उससे तथा मतिज्ञादि विभावगुण के सम्बन्ध से रहित और नरनारकादि चतुर्गतिरूप विभाव पर्यायो से रहित ऐसा जो चिदानन्द चिद्रूप एक अखण्ड स्वभाव शुद्धात्मतत्व है। वही सत्य है। उसी को समयसार कहना चाहिए। वही सर्वप्रकार से आराधने योग्य है। प्रश्न ६४-परमात्म प्रकाश अध्याय एक श्लोक ६५वें मे कैसा द्रव्य आश्रय करने योग्य बताया है ? उत्तर-"यहाँ जो शुद्ध निश्चयकर बन्ध-मोक्ष का कर्ता नही है। वही शुद्धात्मा आराधने योग्य है।"