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( ११४ ) और जितना ज्ञान का अप्रगटपना है उसको अज्ञान औदयिक भाव कहते हैं, अत अज्ञानभाव नैमित्तिक है और ज्ञानावरणीय का उदय निमित्त है। यह सक्लेशरूप तो नही है, क्योकि सक्लेशरूप तो रागद्वैप मोहभाव है इसीलिए यह बन्ध का कारण नही है। किन्तु दुखरूप अवश्य है क्योकि इसके कारण स्वभाविक ज्ञान और सुख का अभाव हो रहा है।
प्रश्न ३८-मिथ्यादर्शन मे निमित्त-नैमित्तिक क्या है ?
उत्तर-मिथ्यादर्शन नैमित्तिक है और दर्शनमोहनीय का उदय निमित्त है।
प्रश्न ३९- असिद्धत्व भाव में निमित्त-नैमित्तिक क्या है ?
उत्तर-जैसे-सिद्धदशा को सिद्धत्व भाव कहते हैं, सिद्धत्व भाव नैमित्तिक है और कर्मों का सर्वथा अभाव निमित्त है, उसी प्रकार 'पहिले गुणस्थान से लेकर चौदहवें गुणस्थान तक असिद्धत्व भाव रहता है वह नैमित्तिक है और आठो कर्मों का उदय निमित्त है।
प्रश्न ४०-आपने असिद्धत्व भाव को नैमित्तिक कहा और आठो कर्मों को निमित्त कहा, परन्तु असिद्धत्वभाव १४वें गुणस्थान तक होता है वहां आठो कर्मों का निमित्त कहाँ है ?
उत्तर-जितनी मात्रा मे भी आत्मा मे ससार तत्व है वह असिद्धत्व है किसी भी प्रकार का विकार हो चाहे वह केवल योग जनित हो या प्रतिजीवी गुणो का ही विपरीत परिणमन हो वह सब असिद्धत्वभाव है वह नैमित्तिक है, वहाँ पर जैसा-जैसा कर्म का उदय हो उतना 'निमित्त समझना। जैसे-अरहतदशा मे प्रतिजीवी गुणो का विकार नैमित्तिक है और चार अघातियाँ कर्म निमित्त हैं।
प्रश्न ४१-लेश्या के भावो में निमित्त नैमित्तिक क्या है ?
उत्तर- कषाय से अनुरजित योग को लेश्या कहते है । अत लेश्या का भाव नैमित्तिक है जो योग सहचर है और मोहनीय कर्म का उदय 'निमित्त है।