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प्रश्न ३२ - मोह राग-द्वेष सम्बन्धी गति औदयिक भाव को जरा द्रष्टान्त देकर समझाओ ?
उत्तर -- जैसे -- दिल्ली को चूहा पकडने का मोहज भाव है वह उस तिर्यचगति का गतिओदयिक भाव के नाम से लोक तथा आगम मे प्रसिद्ध है । इसी प्रकार चारो गतियो मे उस उस प्रकार के गति औदयिक भाव है । जैसे- ( १ ) स्त्री मे स्त्री जैसा राग, पुरुष मे पुरुष जैसा राग, देव मे देव जैसा राग, बन्दर मे वन्दर जैसा राग, कुत्तो मे कुत्तो जैसा राग, यह गति औदयिक भावो का सार है ।
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प्रश्न ३३ -- गति के अनुसार ऐसा औदयिकभाव क्यो है ? उत्तर--" जैसी गति, वैसी मति" ऐसा निमित्त नैमित्तिक सम्बन्ध
है |
प्रश्न ३४ -- गति औदयिक भाव में निमित्त नैमित्तिक क्या है ? उत्तर- ( १ ) सूक्ष्मत्व प्रतिजीवी गुण की विकारी दशा नैमित्तिक है और नामकर्म का उदय निमित्त है परन्तु यह बन्ध का कारण नही है |
प्रश्न ३५ --- मोहज गति ओदयिकभाव मे निमित्तनैमित्तिक फोन
है ?
उत्तर - गति सम्बन्धी मोह-राग-द्वेष भाव नैमित्तिक है और दर्शनमोहनीय, चारित्रमोहनीय का उदय निमित्त है ।
प्रश्न ३६-- कषाय, लिंग, असंयम मे निमित्तनैमित्तिक क्या है ? उत्तर - चारित्र गुण की विकारी दशा नैमित्तिक है और चारित्र मोहनीय का उदय निमित्त है ।
प्रश्न ३७ – अज्ञान औदयिक भाव मे निमित्तनैमित्तिक क्या है ? उत्तर - आत्मा मे जितना ज्ञान सुज्ञानरूप से या कुमति आदि रूप से विद्यमान है वह सब तो क्षायोपशमिक ज्ञान भाव है ओर जीव का पूर्ण स्वभाव केवलज्ञान है ।
जितना ज्ञान का प्रगटपना है उतना क्षयोपशमिक ज्ञान भाव है ।