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( १०६ ) शमिक भाव और धर्म का क्षायोपशमिक भाव मोक्षमार्ग रूप है। (३) क्षायिक भाव मोक्ष स्वरूप है। (४) पारिणामिक भाव आश्रय करने योग्य ध्येयरूप है। (५) क्षायिक ज्ञान-दर्शन, वीर्य जीव का पूर्ण स्वभाव पर्याय मे है और क्षायोपशमिक एकदेश स्वभाव भी पर्याय में है। मिथ्यादृष्टि का ज्ञान मिथ्याज्ञान है इस प्रकार अच्छे-बुरे परिणामो का ज्ञान हो जाता है।
प्रश्न १२–औपशमिक भाव किसे कहते हैं ?
उत्तर-कर्मों के उपशम के साथ सम्बन्धवाला आत्मा का जो भाव होता है उसे औपशमिक भाव कहते हैं।
प्रश्न १३-कर्म का उपशम क्या है ?
उत्तर-आत्मा के पुरुषार्थ का निमित्त पाकर जड कर्म का प्रगट रूप फल जड कर्म रूप मे न आना वह कर्म का उपशम है।
प्रश्न १४-औपशमिक भाव के कितने भेद हैं ? । उत्तर-दो भेद है-औपगमिक सम्यक्त्व, औपशमिक चारित्र । प्रश्न १५-औपशमिक सम्यक्त्व और औपशमिक चारित्र क्या
- उत्तर-औपशमिक सम्यक्त्व श्रद्धा गुण की क्षणिक स्वभाव अर्थ पर्याय है। और औपशमिक चारित्र गुण की क्षणिक स्वभाव अर्थ पर्याय है । यह दोनो भाव सादिसान्त हैं।
प्रश्न १६--औपशमिक सम्यक्त्व और औपशमिक चारित्र कौनकौन से गुणस्थान मे होता है ? । ___ उत्तर-औपशमिक सम्यक्त्व चौथे से सातवे गुणस्थान तक हो सकता है। और औपशमिक चारित्र मात्र ग्यारहवें गुणस्थान मे होता
प्रश्न १७–क्षायिकभाव किसे कहते हैं ?
उत्तर - कर्मों के सर्वथा नाश के साथ सम्बन्ध वाला आत्मा का अत्यन्त शुद्धभाव का प्रगट होना यह क्षायिकभाव है।