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(३) क्षायोपशमिक भाव मे अरहत और कम हो गये । ( ४ ) क्षायिक भाव में छदमस्थ निकल गये, मात्र अरहत - सिद्ध रह गये ( क्षायिक सम्यक्त्वी और क्षायिक चारित्र वाले जीव गौण है) (५) ओपशमिक भाव मे मात्र औपरामिक सम्यग्दृष्टि तथा औपशमिक चारित्र वाले जीव रहे ।
प्रश्न ८ - औपशमिक भाव को प्रथम लेने का क्या कारण है ?
उत्तर -- तत्वार्थ सूत्र मे भगवान उमास्वामी ने प्रथम अध्याय मे प्रथम सम्यग्दर्शन की बात की है; क्योकि इसके विना धर्म की शुरुआत नही होती है । उसी प्रकार दूसरे अध्याय के प्रथम सूत्र मे औपशमक भाव की बात को है क्योकि औपशमिक भाव के बिना सम्यग्दर्शन नही होता है । इसलिए प्रथम औपशमिक भाव को लिया है ।
प्रश्न -इन पांचो भावो से क्या सिद्ध हुआ ?
उत्तर- (१) पारिणामिक भाव के बिना कोई जीव नही । (२) ओयिक भाव के बिना कोई ससारी नही । ( ३ ) क्षायोपशमिक भाव के बिना कोई छदमस्थ नही । ( ४ ) क्षायिक भाव के बिना अरहत और सिद्ध नही अर्थात् क्षायिक भाव के विना केवलज्ञान और मोक्ष नही । (५) ओपशमिक भाव के बिना धर्म की शुरुआत नही ।
प्रश्न १० - असाधारण भाव किसे कहते हैं ?
उत्तर- ( १ ) असाधारण का अर्थ तो यह है कि ये भाव आत्मा में ही पाये जाते हैं, अन्य पाँच द्रव्यो मे नही पाये जाते हैं । (२) आत्मा मे किस-किस जाति के भाव (परिणाम) पाये जाते हैं और इनके द्वारा जीव को स्वय का स्पष्ट सम्पूर्ण ज्ञान द्रव्य-गुण पर्याय सहित हो जाता है ।
प्रश्न ११ - इन भावो के जानने से ज्ञान मे स्पष्टता कैसे आ जाती
है ?
उत्तर- हानिकारक लाभदायक परिणामो का ज्ञान हो जाता है जैसे - (१) ओदयिक भाव हानिकारक और दुखरूप है ।
( २ ) औप