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( १०७ ) है। इसलिये प्रयोजनभूत बातो का निर्णय करने के लिए पांच असाधारण भावो का स्वरूप जानना आवश्यक है।
प्रश्न ३-५० टोडरमल ने इस विषय मे क्या कहा है ?
उत्तर-जीव को तत्वादिक का निश्चय करने का उद्यम करना चाहिए, क्योकि इससे औपशमिकादि सम्यक्त्व स्वयमेव होता है । द्रव्यकर्म के उपशमादि पुद्गल की पर्याये हैं। जीव उसका कर्ता-हर्ता नही है।
प्रश्न ४-जीव के असाधारण भावों के लिए आचार्यों ने कोई सूत्र कहा है ?
उत्तर-"औपशमिकक्षायिको भावी मिश्रश्च जीवस्य स्वतत्वमौदयिक पारिणामिको च" [तत्वार्थसूत्र, अध्याय दूसरा सूत्र प्रथम]
प्रश्न ५-जीव के असाधारण भाव कितने हैं ?
उत्तर-पांच हैं, (१) औपशमिक, (२) क्षायिक, (३) क्षायोपश-- मिक, (४) औदयिक, और (५) पारिणामिक यह पाँच भाव जीवो के निजभाव हैं । जोव के अतिरिक्त अन्य किसी मे नही होते हैं।
प्रश्न ६-इन पांचो भावो में यह क्रम होने का क्या कारण है ?
उत्तर-(१) सबसे कम सख्या औपशमिक भाव वाले जीवो की है। (२) औपशमिक भाव वालो से अधिक संख्या क्षायिक भाव वाले जीवो की है। (३) क्षायिकभाव वालो से अधिक संख्या क्षायोपशमिक भाव वाले जीवो की है। (४) क्षायोपशमिक भाव वालो से भी अधिक सख्या औदयिक भाव वाले जीवो की है। (५) सबसे अधिक संख्या पारिणामिक भाव वाले जीवो की है। इसी क्रम को लक्ष्य मे रखकर भावो का क्रम रखा गया है।
प्रश्न ७-कौन-कौन से भाव मे कौन-कौन से जीव आये और कौन-कौन से निकल गये?
उत्तर-(१) पारिणामिक भाव मे निगोद से लगाकर सिद्ध त सब जीव आ गये। (२) औदयिकभाव मे सिद्ध कम हो गये