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________________ ( १०६ ) वर्तमान पर्याय मे मेरे ही अपराध से एक समय की भूल है। उस भूल मे निमित्त कारण द्रव्यकर्म-नोकर्म है, मैं नही हैं। ऐसा जानकर अपने अनादिअनन्त एकरूप स्वभाव का आश्रय ले, तो धर्म की प्राप्ति करके कम से मोक्ष का पथिक बने ? जिन, जिनवर, जिनवरवृपभ कथित मोक्षमार्ग अधिकार सम्पूर्ण जीव के असाधारण पाँच भावो का तीसरा अधिकार नहिं स्थान क्षायिक भाव के, क्षायोपशमिक तथा नहीं । नहिं स्थान उपशम भाव के होते उदय के स्थान नहीं ॥४१॥ प्रश्न १-अपने आत्मा का हित चाहने वालो को क्या करना चाहिए? उत्तर-अत्यन्त भिन्न पर पदार्थों से, औदारिक-तैजस-कार्माणशरीरो से, भापा से और मन से तो मेरा किसी भी प्रकार का किसी भी अपेक्षा कर्ता-भोक्ता का सम्बन्ध है ही नही। मात्र व्यवहार से इनका ज्ञेय-ज्ञायक सम्बन्ध है। ऐसा जानकर पात्र जीवो को अपने निज भावो की पहचान करनी चाहिए। प्रश्न २-अपने निज भावो को पहिचान क्यो करनी चाहिए? उत्तर-(१) कौन सा निज भाव आश्रय करने योग्य है। (२) कौन सा भाव छोडने योग्य है। (३) कौन सा भाव प्रगट करने योग्य
SR No.010119
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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