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दानादि की प्रथम बात नही करते, बल्कि सम्यग्दर्शन की बात करते हैं । क्योकि सम्यग्दर्शन प्राप्त होने पर जितना ज्ञान है वह सम्यग्ज्ञान है और जो चारित्र है वह सम्यक् चारित्र है । इसलिए प्रथम सम्यग्दर्शन की बात करते हैं। छहढाला में कहा है
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मोक्षमहल की प्रथम सोढी, या बिन ज्ञान-चरित्रा, सम्यक्ता न लहे, सो दर्शन, धारो भव्य पवित्रा | "दौल" समझ, सुन, चेत, सयाने, काल वृथा मत खोवं, यह नर भव फिर मिलन कठिन है जो सम्यक् नहि होवे ॥ प्रश्न १६३ - शुभभाव से मोक्षमार्ग क्यो नहीं है ? उत्तर- ( १ ) श्री प्रवचनसार गा० ११ की टीका में कहा है कि " शुद्धोपयोग उपादेय है और शुभोपयोग हेय है" ।
(२) पुरुषार्थसिद्धयुपाय गाथा २२० मे कहा है “शुभोपयोग अपराघ है” चारो अनुयोगो मे एकमात्र अपने भूतार्थ के आश्रय से ही मोक्षमार्ग और मोक्ष भगवान ने कहा है और शुभभाव किसी का भी हो वह तो ससार का ही कारण है। इसलिए शुभभाव से कभी भी मोक्षमार्ग और मोक्ष नही होता है ।
प्रश्न १६४ - मिश्रदशा क्या है ?
उत्तर -- जिसने अपने स्वभाव का आश्रय लिया उसे मोक्ष तो नही हुआ, परन्तु मोक्षमार्ग हुआ । (१) मोक्षमार्ग मे कुछ वीतराग हुआ है कुछ सराग रहा है । (२) जो अश वीतराग हुए उनमे सवर - निर्जरा है और जो अग सराग रहे उनसे बध है । ऐसे भाव को मिश्रदशा कहते हैं ।
प्रश्न १६५ --- मिश्रदशा मे निमित्तनैमित्तिक क्या है ?
उत्तर - जो शुद्धि प्रगटी वह नैमित्तिक है और भूमिकानुसार राग वह निमित्त है ।
प्रश्न १६६ - क्या जाने तो धर्म की प्राप्ति हो ?
उत्तर- (१) मेरा स्वभाव अनादिअनन्त एकरूप है । (२) मेरी