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( ११० ) प्रश्न १८-कर्म का क्षय क्या है ?
उत्तर-आत्मा के पुरुषार्थ का निमित्त पाकर कर्म आवरण का नाश होना वह कर्म का क्षय है ।
प्रश्न १६–क्षायिकभाव के कितने भेद हैं ?
उत्तर--नौ भेद है -(१) क्षायिक सम्यक्त्व, (२) क्षायिकचारित्र (३) क्षायिक ज्ञान, (४) क्षायिकदर्शन, (५) क्षायिकदान (६) क्षायिकलाभ, (७) क्षायिकभोग, (८) क्षायिक उपभोग, (६) क्षायिक वीर्य है तथा इसको क्षायिकलब्धि भी कहते है।
प्रश्न २०-ये नौ क्षायिकभाव क्या हैं ?
उत्तर-आत्मा के भिन्न-भिन्न अनुजीवी गुणो की क्षायिक स्वभाव अर्थ पर्यायें है।
प्रश्न २१-ये नौ क्षायिकभाव कब प्रगट होते हैं और कब तक रहते हैं ?
उत्तर-यह भाव १३वे गुणस्थान में प्रकट होकर सिद्धदशा मे अनन्तकाल तक धारा प्रवाहरूप से सादिअनन्त रहते हैं। क्षायिकसम्यक्त्व किसी-किसी को चौथे गुणस्थान मे, किसी-किसी को पांचवे मे, किसी-किसी को छठे मे, किसी-किसी को सातवे गुणस्थान मे हो जाता है। क्षायिक चारित्र १२वे गुणस्थान में प्रकट हो जाता है और प्रगट होने पर सादिअनन्त रहता है।
प्रश्न २२-क्षायोपशमिक भाव किसे कहते हैं ?
उत्तर-कर्मों के क्षयोपशम के साथ सम्बन्ध वाला जो भाव होता है उसे क्षायोपशमिक भाव कहते हैं।
प्रश्न २३-कर्म का क्षयोपशम क्या है ?
उत्तर-आत्मा के पुरुपार्थ का निमित्त पाकर कर्म का स्वय अशत क्षय और स्वय अशत उपशम यह कर्म का क्षयोपशम है।
प्रश्न २४-क्षायोपमिक भाव के कितने भेद हैं ? उत्तर-१८ भेद हैं -४ ज्ञान [मति, श्रुत अवधि, मन पर्यय]