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( ६४ )
उत्तर--एक मात्र अनन्त गुणों के प्रभेद पिण्ड अपने ज्ञायक द्रव्य का सामायिक के लिए पात्र जीव ग्राश्रय करता है ।
प्रश्न (६७) --प्रपात्र जीव सामायिक के लिए किसका आश्रय करता है ? और उसका फल क्या है ?
उत्तर - शरीर की क्रिया का और पाठ बोलने आदि का आश्रय करता है और उसका फल अनन्त संसार है । छः ढाला में कहा है कि
'मुनिव्रत धार ग्रनन्तवार ग्रीवक उपजायो । निज प्रातम ज्ञान बिना, सुख लेश न पायो ॥
प्रश्न ( ६८ ) - शान्ति प्राप्त करने के लिए किसका आश्रय करे तो शान्ति की प्राप्ति हो ?
उत्तर - एक मात्र अनन्त गुणों के प्रभेद ज्ञायक द्रव्य का ही श्रय करने से शान्ति की प्राप्ति होती है ।
प्रश्न ( ६९ -- ज्ञानी शान्ति के लिए किस किस का आश्रय मानता है ? और उसका फल क्या है ?
उत्तर- नौ प्रकार के पक्षों से शान्ति मानता है और उसका फल चारों गतियों का भ्रमण है ।
प्रश्न ( ७० ) -- सिद्ध भगवान को किसका आश्रय है ? उत्तर - एक मात्र अनन्त गुणों के अभेद पिण्ड भूतार्थ स्वभावी अपने भगवान का ही आश्रय वर्तता है ।
प्रश्न ( ७१ ) -- जबकि 'अनन्त गुणों का अभेद ज्ञायक पिण्ड भगवान प्रात्मा के श्राश्रय से ही सम्यकदर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक चारित्र, श्रेणी, अरहत और सिद्धदशा की प्राप्ति है