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परन्तु दोनों अपनी अपनी क्रियावती शक्ति से चलते हैं। तो धर्मद्रव्य को निमित्त कहा जाता है ।
प्रश्न (५६) - मैं देहली से बम्बई आया तो अज्ञानी कहता है कि. शरीर तो अपनी क्रियावती शक्ति से आया लेकिन मैं निमित्त तो हूं ना, क्या यह बात ठीक है ?
उत्तर - बिल्कुल गलत है, प्रज्ञानी मिथ्यात्व के कारण, धर्म द्रव्य चलते हुए जीव और पुद्गलों को निमित्त होता है, ऐसा न मानकर स्वयं धर्म द्रव्य बन गया। अभिप्राय में धर्मद्रव्य का नाश माना, इसका फल निगोद है ।
प्रश्न (५७ ) -- धर्म द्रव्य कितने है और कहाँ कहाँ रहते हैं ? उत्तर- धर्म द्रव्य एक ही है और सम्पूर्ण लोकाकाश में फैला हुआ है।
प्रश्न (५८) -- धर्मद्रव्य सम्पुर्ण लोकाकाश में फैला हुआ है यह बात साची है या झूठी है ?
उत्तर- झूठी है क्योंकि व्यवहारनय से कहा जाता है कि सम्पूर्ण लोकाकाश में फैला हुआ है
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प्रश्न (५६) - धर्म द्रव्य सम्पूर्ण लोकाकाश में फैला हुआ है यह बात झूठी है तो साची बात क्या है ?
उत्तर- धर्म द्रव्य अपने असंख्यात प्रदेशों में फैला हुआ है यह बात साचो है ।
प्रश्न (६०) - अधर्म द्रव्य किसे कहते हैं ?