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भी प्रकार का सम्बंध नहीं है ऐसा जानकर अस्पर्श अरस, गंध, प्रवर्ण स्वभावी अपनी
आत्मा
का श्राश्रय ले तो यह २० पर्यायों के जानने का लाभ है ।
प्रश्न ( ३६ ) - इन बीस पर्यायों से अपना सम्बंध माने तो क्या होगा ?
उत्तर - जैसे माता का पुत्र के साथ जैसा सम्बंध है वैसा ही संबंध माने तो ठीक है उससे विरुद्ध सम्बंध माने तो निन्दा का पात्र होता है, उसी प्रकार पुद्गल की २० पर्यायों के साथ व्यवहार से ज्ञेय-ज्ञायक सम्बंध है ऐसा माने तो ठीक है परन्तु २० पर्यायों को ही स्वयं अपने रुप माने तो वह जिनवाणी माता की विराधना करने वाला निगोद का पात्र है ।
प्रश्न ( ३७ ) - मैं मुंह धोता हूँ, मै दातून करता हूं, मैं खाता हूं, शरीर के चलने को मैं चलता हूं, मैं टट्टी पेशाब जाता हूं, मैं कपड़े पहनता हूं, मेरा हाथ है, मेरा मुंह है, ऐसी मान्यता वाले जीव ने क्या किया ?
उत्तर - यह सभी कार्य पुद्गल के हैं आत्मा के नहीं हैं परन्तु अज्ञानी सभी जगह "मैं" लगाता है यह तभी सम्भव हो सकता है जबकि मैं (जीव ) मिटकर पुद्गल हो जावे परन्तु ऐसा नहीं हो सकता है परन्तु ऐसी खोटी मान्यता वाले ने अपने अभिप्राय में अपने जीब को