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उत्तर- (१) श्रात्मा के ज्ञान गुण में से भाव श्रुतज्ञान का अभाव करके केबलज्ञान की प्राप्ति हुई, तो "गुणों के कार्य को पर्याय कहते हैं" माना ।
(२) कवलज्ञानावर्णी कर्म के प्रभाव से केवलज्ञान हुआ तो, 'गुणों के कार्य को पर्याय कहते हैं " नहीं माना
प्रश्न ( ५ ) - केवलज्ञान की प्राप्ति होने से केवलज्ञानावर्णी कर्म प्रभाव हुआ, इसमें 'गुणों के कार्य को पर्याय कहते हैं" कव माना, और कब नहीं माना ?
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उत्तर- ( १ ) कार्माण वर्गणा में से केवलज्ञानावर्णी द्रव्यकर्म के क्षयोपशम का प्रभाव करके केवल ज्ञानावर्णी कर्म का प्रभाव हुआ, तो गुणों के कार्य को पर्याय कहते हैं" माना ।
(२) केवलज्ञान की प्राप्ति होने से केवल ज्ञानावर्णी कर्म का अभाव हुआ, तो "गुणों के कार्य को पर्याय कहते है" नही माना !
प्रश्न ( ६ ) - 'प्रांख से ज्ञान होता है' इसमें गुणों के कार्य को पर्याय कहते हैं ' कब माना ? और कब नहीं माना ? उत्तर - श्रात्मा के ज्ञान गुण में से ज्ञान आया, तो पर्याय को माना और आँख से ज्ञान हुआ, तो पर्याय को नहीं
माना ।
प्रश्न ( ७ ) गुरु से ज्ञान होता है' 'इसमें गुणों के कार्य को पर्याय कहते हैं" कब माना, और कब नहीं माना ? उत्तर - (१) ज्ञान प्रात्मा के ज्ञान गुण में से प्राया तो पर्याय को माना और गुरु से ज्ञान हुआ तो पर्याय को नहीं माना