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(११६ ) स्थान वाले का सिद्ध के साथ सम्बंध हो
जाता है। (१२) तू ज्ञायक, तू ज्ञायक, तू ज्ञायक है यह पता चल
जाता है। प्रमेयत्व गुण का विस्तार जैन सिद्धान्त प्रवेश
रत्नमाला प्रथम भाग में देखो। प्रश्न (७२)-अगुरुलघुत्व गुण किसे कहते हैं ? उत्तर-जिस शक्ति के कारण से द्रव्य में द्रव्यपना कायम रहता है
अर्थात् (१) एक द्रव्य दूसरे द्रव्य रुप नहीं होता है, (२) एक गुण दूसरे गुण रुप नहीं होता है; (३) द्रव्य में विद्यमान अनन्त गुण बिखर कर अलग
नहीं हो जाते हैं- उस शक्ति को अगुरुलघुत्व गुण
कहते हैं। प्रश्न (७३) अगुरुलघुत्व गुण को जानने के थोड़े में क्या २
लाभ हैं ? उत्तर-(१) एक द्रव्य का दूसरे द्रव्य से किसी भी प्रकार का
सम्बंध नहीं है क्योंकि प्रत्येक द्रव्य का द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव पृथक पृथक है; (२) एक द्रव्य में अनन्त गुण हैं एक गुण का दूसरे
गुण के साथ सम्बंध नहीं है क्योंकि प्रत्येक गुण
का "भाव” पृथक पृथक है; (३) प्रत्येक द्रव्य में अनन्त गुण हैं वह बिखरकर
अलग अलग नहीं होते हैं क्योंकि द्रव्य और गुण का द्रव्य, क्षेत्र काल एक ही है;