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(४) प्रत्येक द्रव्य में गुण संख्या अपेक्षा समान हैं ;
यह पता चल जाता है; (५) एक गुण की पर्याय का दूसरे गुण की पर्याय से
सम्बंध नहीं है क्योंकि प्रत्येक गुण की पर्याय का
कार्य पृथक पृथक है। (६) एक गुण की पर्याय का उसी गुण की भूत भविष्य
पर्याय से सम्बध नहीं है क्योंकि भूत की पर्याय में वर्तमान पर्याय का प्रागभाव है और वर्तमान
पर्याय का भविष्य की पर्याय में प्रध्वंसाभाव है। प्रश्न (७४)-अगुरुलघुत्व गुण का रहस्य जानने के लिए पांच
बोल क्या क्या हैं ? उत्तर-(१) अनादिकाल से आज तक किसी भी पर द्रव्य ने
मेरा भला बुरा किया ही नहीं। (२) अनादि काल से आजतक मैंने भी किसी पर द्रव्य
का भला बुरा किया ही नहीं। अनादिकाल से प्राजतक नुकसानी का ही धंधा किया है यदि नुकसानी ना की होती तो आज संसार परिभ्रमण मिट गया होता, सो हुमा
नहीं। (४) वह नुकसानी मात्र एक समय की पर्याय में ही
है द्रव्य गुण में नहीं। (५) पर्याय की नुकसानी मिटानी हो और पर्याय
में शान्तिलानी हो तो एक मात्र अपने गुणों के
अभेद पिण्ड ज्ञायक भाव का प्राश्रय कर।। मगुरुलघुत्व गुण का विस्तार जैन सिद्धान्त प्रवेश रत्नमाला प्रथम भाग में देखो।