________________ ( 236 ) निमित्त दया दान पूजा किये, जीव सुखी जग होय / जो निमित्त झूठी कहो यह क्यो माने लोय // 14 अर्य-निमित्त कहता है कि दया-दान-पूजा करने से जीव जगत मे सुखी होता है। यदि आपके कथनानुसार निमित्त झूठा हो, तो लोग उसे क्यो मानेगे। उपादान-दया दान पूजा भली, जगत माहि सुखकार / ___ जहं अनुभव को आचरण, तहं यह बंध विचार // 15 अर्थ-उपादान कहता है-दया-दान-पूजा इत्यादि भले ही जगत मे बाह्य सहुलियत दे, कि जहाँ अनुभव के आचरण पर विचार करते हैं, वहाँ यह सब (शुभ भाव) वध है [धर्म नही] / निमित्त-यह तो बात प्रसिद्ध है, सोच देख उर माहिं। नर देहि के निमित्त विन, जिय क्यो मुक्ति न जाहिं // 16 अर्थ-निमित्त कहता है कि यह बात तो प्रसिद्ध है कि नर देह के निमित्त विना जीव मुक्ति को प्राप्त नहीं होता, इसलिए हे उपादान ! तू इस सम्बन्ध मे अपने अन्तरग मे विचार कर देख / उपादान-देह पीजरा जीव को, रोक शिवपुर जात / उपादान की शक्ति सो, मुक्ति होत रे भ्रात // 17 अर्थ-उपादान निमित्त से कहता है कि भाई / देहरूपी पिंजरा तो जीव को शिवपुर (मोक्ष) जाने से रोकता है, किन्तु उपादान की शक्ति से मोक्ष होता है। नोट-(देहरूपी पिंजरा जीव को मोक्ष जाने से रोकता है यह व्यवहार कथन है / जीव शरीर पर लक्ष्य करके अपनेपन की पकड से स्वय विकार मे रुक जाता है, तब शरीर का पिंजरा जीव को रोकता है, यह उपचार से कथन है।) निमित्त उपावान सब जीव पे, रोकन हारो कोन / जाते क्यों नहिं मुक्ति में, बिन निमित्त के होन // 18 अर्थ-निमित्त कहता है कि उपादान तो सब जीवो के हैं तब उन्हें