________________ ( 235 ) राग का आगम उत्कृष्ट है, इन निमितो द्वारा सभी जीव भव से पार होते हैं। उपादान—यह निमित्त इह जीव के मिल्यो अनंतीवार / उपादान पलट्यो नहीं तो भटक्यो संसार // अर्थ-उपादान कहता है कि यह निमित्त इस जीव को अनतबार मिले, किन्तु उपादान-जीव स्त्रय नही बदला, इसलिये वह ससार में भटकता रहा। निमित्त-के केवलि के साधु के, निकट भव्य जो होय / सोक्षायक सम्यक लहै, यह निमित्त बल जोय // 10 अर्थ-निमित्त कहता है कि यदि केवली भगवान अथवा श्रुतकेवली मुनि के पास भव्य जीव हो तो क्षायिक सम्यक्त्व प्रगट होता है-यह निमित्त का बल देखो। उपादान-केवलि अरु मुनिराज के, पास रहे बहु लोय। पंजाको सुलटियो धनी क्षायिक ताको होय // 11 अर्थ-उपादान कहता है कि केवली और श्रु नकवली भगवान के पास बहुत से लोग रहते हैं, किन्तु जिसका धनी [आत्मा] अनुकूल होता है, उसी को क्षायिक सम्यक्त्व होता है। निमित्त-हिंसादिक पापन किये, जीव नरक में जाहि / जो निमित्तनहिं काम को तो इम काहे कहाहि // 12 / अर्थ-निमित्त कहता है कि यदि निमित्त कार्यकारी न हो, तो फिर यह क्यो कहा जाता है-हिंसादिक पाप करने से जीव नरक में जाता है ? उपादान-हिंसा में उपयोग जहां, रहे ब्रह्म के राच / ____ तेई नरक मे जात हैं, मुनि नहिं जाहिं कदाच // 13 __ अर्थ-हिंसादिक मे जिसका उपयोग (चैतन्य परिणाम) हो और जो आत्मा उसमे रचा-पचा रहे वही नरक मे जाता है। भावमुनि कदापि नरक मे नही जाते।