________________ ( 234 ) अर्थ-यहाँ कोई पूछता है कि उपादान किसका नाम है ? निमित्त "किसे कहते हैं ? और उनका सवध कब से है ? सो कहो / उत्तर-उपादान निज शक्ति है जियको मूल स्वभाव / है निमित्त परयोग तें, बन्यो अनादि बनाय // 3 अर्थ-उपादान अपनी निजकी शक्ति है वह जीव का मूल स्वभाव है और पर सयोग निमित्त है उनका सम्बन्ध अनादिकाल से बना हुआ निमित्त-निमित्त कहै मोको सबै, जानत है जग लोय / तेरा नाव न जान ही, उपादान को होय // 4 अर्थ-निमित्त कहता है कि जगत् के सभी लोग मुझे जानते हैं और उपादान कौन है, उसका नाम तक नही जानते।। “उपादान-उपादान कहें रे निमित्त, तू कहा कर गुमान। मोको जानें जीव वे जो हैं सम्यक् वान // 5 अर्थ-उपादान कहता है कि हे निमित्त / तू अभिमान किसलिये करता है / जो जीव सम्यक ज्ञानी हैं वे मुझे जानते हैं। निमित्त-कहैं जीव सब जगत के, जो निमित्त सोई होय। उपादान की बात को, पूछे नाहीं कोय // 6 अर्थ-जगत के सब जीव कहते है कि जैसा निमित्त होता है वैसा ही कार्य होता है / उपादान की वात को तो कोई पूछता ही नही है। उपादान-उपादान बिन निमित्त तू, कर न सके एक काज / कहा भयो जग ना लखै, जानत है जिनराज // 7 अर्थ-उपादान कहता है कि अरे निमित्त एक भी कार्य बिना उपादान के नहीं हो सकता, इसे जगत नहीं जानता तो क्या हुआ ? जिनराज तो उसे जानते है। 'निमित्त-देव जिनेश्वर गुरु यती, अरु निज आगम सार / इह निमित्त से जीव सब, पावत हैं भवपार // अर्थ-निमित्त कहता है कि जिनेश्वरदेव, निग्रंथगुरु और वीत