________________ हो रहा हैन कहता है सिद्ध लोक का ( 237 ) रोकने वाला कोन है ? वे मोक्ष मे क्यो नही चले जाते ? स्पष्ट है कि निमित्त के न होने से ऐसा नहीं होता। उपादान-उपादान सु अनादिका, उलट रह्यो जग माहि। सुलटत ही सूघे चलें सिद्ध लोक को जांहि // 16 अर्थ-उपादान कहता है कि जगत मे अनादिकाल से उपादान उल्टा हो रहा है, उसके सुल्टे होते सच्चा-ज्ञान और सच्चा चारित्र प्रगट होता है और उससे वह सिद्ध लोक को जाता है-मोक्ष पाता है। निमित्त-कहुं अनादि बिन निमित्तही उलट रह्यौ उपयोग। _ऐसी बात न संभवै उपादान तुम जोग / / 20 ____अर्थ-निमित्त कहता है कि क्या अनादि से विना निमित्त के ही उपयोग (ज्ञान का व्यापार) उल्टा हो रहा है / हे उपादान / तुम्हारे लिए ऐसी बात तो सभव नही है। उपादान-उपादान कहे रे निमित्त हम पे कहीं न जाय / ऐसे ही जिन केवलो, देखे त्रिभुवन राय // 21 अर्थ-उपादान कहता है कि हे निमित्त / मुझ से नहीं कहा जा सकता / जिनेन्द्र केवलीभगवान त्रिभुवन राय ने ऐसा ही देखा है। नोट-(यहां कहा है कि उपादान मे कार्य होता है तब निमित्त स्वय उपस्थित होने पर भी उपादान को वह कुछ कर सकता नही-ऐसा अनन्त ज्ञानियो ने अपने ज्ञान मे देखा है) 'निमित्त~जो देख्यो भगवान ने सो ही साँचो आहि। हम तुम संघ अनादि के वली कहोगे काहि // 22 अर्थ-निमित्त कहता है भगवान ने जो देखा है वही सच है। मेरा और तेरा अनादिकालीन सम्बन्ध है। इसलिए दो मे से बलवान किसे कहा जाय ? अर्थात् कम-से-कम यह तो कहो, हम दोनो समान हैं। समकक्ष हैं। उपादान-उपादान कहे वह वली, जाको नाश न होय / जो उपजत विनशत रहे, बली कहा ते सोय // 23