________________ ( 201 ) उत्तर-(१) उस समय पर्याय की योग्यता क्षणिक उपादानकारण ज्ञानरूप कार्य (उत्पाद) (2) अनन्तर पूर्व क्षणवर्ती पर्याय क्षणिक उपादान कारण रागरूप कार्य से अनन्तरपूर्व पर्याय का (व्यय) (3) त्रिकाली उपादान कारण आत्मा का ज्ञान गुण (ध्रौव्य) (4) राग-मुंह-बोलना (निमित्तकारण)। जैसे ज्ञानरूप कार्य मे चार वाते एक ही साथ एक ही समय मे होती हैं, उसी प्रकार ये चारो वातें प्रत्येक कार्य मे एक ही साथ एक ही काल मे नियम से होती हैं। [प्रवचनसार गाथा टीका 65] 19 A. प्रश्न १६-उस समय पर्याय की योग्यता क्षणिक उपादान कारण से ही बोलने रूप कार्य की उत्पत्ति होती है। क्या यह निरपेक्ष है ? उत्तर-हाँ, बोलने रूप कार्य स्वय पर की अपेक्षा नही रखता है इसलिये निरपेक्ष है। और अपनी अपेक्षा रखता है इसलिये सापेक्ष है। पात्र भव्य जीवो को प्रथम निरपेक्ष सिद्धि करनी चाहिए। फिर जो कार्य हुआ-उसका अभावरूप कारण कौन है, त्रिकाली कारण कौन है और निमित्तकारण कौन है। इन बातो का ज्ञान करना चाहिए। क्योकि प्रत्येक कार्य के समय चारो बातें नियम से होती है। B. प्रश्न १६-उस समय पर्याय की योग्यता क्षणिक उपादान कारण से ही मुंह खोलने रूप कार्य की उत्पत्ति होती है। क्या यह निरपेक्ष है ? उत्तर-हाँ, मुंहरूप कार्य स्वय पर की अपेक्षा नही रखता है इसलिये निरपेक्ष है और अपनी अपेक्षा रखता है इसलिये सापेक्ष है। पात्र भव्य जीवो को प्रथम निरपेक्ष सिद्धि करनी चाहिए। फिर जो कार्य हुआ-उसका अभावरूप कारण कौन है, त्रिकाली कारण कौन / और निमित्त कारण कौन है। इन बातो का ज्ञान करना चाहिए। क्योकि प्रत्येक कार्य के समय चारो बाते नियम से होती है।