________________ ( 166 ) D. प्रश्न १७-ज्ञान रूप कार्य के समान विश्व मे जितने भी कार्य हैं। वे सब उस समय पर्याय की योग्यता क्षणिक उपादान कारण से हो चुके हैं, हो रहे हैं और भविष्य में होते रहेगे-ऐसा केवली के समान सच्चा ज्ञान होते हो क्या-क्या कार्य देखने में आता है ? उत्तर-ज्ञानरूप कार्य के समान विश्व के सर्व कार्य अपनी-अपनी योग्यता से ही होते हैं--ऐसा मानते ही-(१) अनादिकाल की पर मे करूं-करूँ की खोटी मान्यता का अभाव होना। (2) दृष्टि अपने ज्ञायक स्वभाव पर आना / (3) सम्यग्दर्शनादि की प्राप्ति होकर क्रम से वृद्धि होकर मोक्ष लक्ष्मी का नाथ होना। (4) मिथ्यात्वादि समार के पाँच कारणो का अभाव होना। (5) द्रव्य-क्षेत्र-काल-भव-भावरूप पच परावर्तन का अभाव होना। (6) पच परमेष्टियो मे गिनती होना। 18 A प्रश्न १८-बोलने रूप कार्य के समान विश्व मे प्रत्येक कार्य उस समय पर्याय की योग्यता क्षणिक उपादान कारण से ही होता है। तब कौन-कौन सी चार बातें एक ही साथ एक ही समय मे नियम से होती हैं ? उत्तर-(१) उस समय पर्याय की योग्यता क्षणिक उपादान कारण बोलने रूप कार्य (उत्पाद) (2) अनन्तर पूर्व क्षणवर्ती पर्याय क्षणिक उपादान कारण बोलने रूप कार्य से अनन्तर पूर्व पर्याय (व्यय) (3) त्रिकाली उपादान कारण भाषा वर्गणा (ध्रौव्य) (4) ज्ञान, राग, मुंह (निमित्त कारण)। जैसे बोलने रूप काय मे चार वाते एक साथ एक ही समय मे होती हैं उसी प्रकार य चार वाते-प्रत्येक कार्य मे एक ही साथ एक ही काल मे नियम से होती है। [प्रवचनसार गाथा टीका 65) B. प्रश्न १८-मुह खुलने कार्य के समान विश्व मे प्रत्येक