________________ ( 168 ) मोक्ष लक्ष्मी का नाथ बनना। (4) मिथ्यात्वादि ससार के पाँच कारणो का अभाव होना। (5) द्रव्य-क्षेत्र-काल-भव-भावरूप पच परावर्तन का अभाव होना / (6) पच परमेष्टियो मे गिनती होना। ___B. प्रश्न १७-मुंह खुलने रूप कार्य के समान विश्व मे जितने भी कार्य हैं। वे सब उस समय पर्याय की योग्यता क्षणिक उपादान कारण से हो चुके हैं, हो रहे हैं और भविष्य में होते रहेगे-ऐसा केवली के समान सच्चा ज्ञान होते ही क्या-क्या अपूर्व कार्य देखने में आता है ? उत्तर-मुंह खुलने रूप कार्य के समान विश्व के सर्व कार्य अपनीअपनी योग्यता से ही होते हैं-~-ऐसा मानते हो (1) अनादिकाल की पर मे करूँ-धरूँ की खोटी मान्यता का अभाव होना / (2) दृष्टि अपने ज्ञायक स्वभाव पर आना। (3) सम्यग्दर्शनादि की प्राप्ति होकर क्रम से वृद्धि होकर मोक्ष लक्ष्मी का नाथ होना। (4) मिथ्यात्वादि ससार के पाँच कारणो का अभाव होना। (5) द्रव्य-क्षेत्र-काल भव-भावरूप पचपरावर्तन का अभाव होना। (6) पच परमेष्टियो मे गिनती होना। ___C. प्रश्न १७-रागरूप कार्य के समान विश्व में जितने भी कार्य है। वे सब उस समय पर्याय की योग्यता क्षणिक उपादान कारण से हो चुके हैं, हो रहे हैं और भविष्य में होते रहेगे-ऐसा केवली के समान सच्चा ज्ञान होते ही क्या-क्या अपूर्व कार्य देखने में आता है ? उत्तर-रागरूप कार्य के समान विश्व के सर्व कार्य अपनी-अपनी योग्यता से ही होते है। ऐसा मानते ही (1) अनादिकाल की पर मे करूँ-धरूँ की खोटी मान्यता का अभाव होना / (2) दृष्टि अपने ज्ञायक स्वभाव पर आना / (3) सम्यग्दर्शनादि की प्राप्ति होकर क्रम से वृद्धि होकर मोक्ष लक्ष्मी का नाथ होना। (4) मिथ्यात्वादि ससार के पाँच कारणो का अभाव होना। (5) द्रव्य-क्षेत्र-काल-भव-भावरूप पच परावर्तन का अभाव होना / (६)पच परमेष्टियो मे गिनती होना।