________________ ( 180 ) आहारवर्गणा बन जाये तो ऐसा माना जा सकता है कि मुझ आत्मा, बोलने रूप भाषावर्गणा, उपादान कारण और मुंह खुला उपादेय / लेकिन ऐसा नहीं हो सकता है क्योकि उपादान-उपादेय अभिन्न सत्ता वाले पदार्थों में ही होता है। आत्मा, बोलना, मुंह खुला जिनकी सत्ता-सत्त्व भिन्न-भिन्न है, ऐसे पदार्थों मे उपादान-उपादेय नही होता है। _____C. प्रश्न ४-यदि कोई चतुर बोलने रूप भाषा वर्गणा, मुंह खुलने रूप आहारवर्गणा उपादान कारण और राग उपादेय। ऐसा ही माने क्या दोष आता है ? उत्तर-बोलने रूप भाषावर्गणा, मुंहरूप आहारवर्गणा नष्ट होकर आत्मा का चारित्र गुण वन जाये तो ऐसा माना जा सकता है कि बोलने रूप भाषावर्गणा, मुंहरूप आहारवर्गणा उपादान कारण और राग उपादेय / लेकिन ऐसा नहीं हो सकता है, क्योकि उपादान-उपादेय अभिन्न सत्ता वाले पदार्थों मे ही होता है। बोलना, मुंह खुलना राग जिनकी सत्ता-सत्त्व भिन्न-भिन्न है। ऐसे पदार्थों मे उपादान-उपादेय नही होता है। ___D प्रश्न 4 यदि कोई चतुर रागल्प चारित्रगुण, बोलने रूप भाषावर्गणा, मुंहरूप आहार वर्गणा उपादान कारण और ज्ञान उपादेय। ऐसा ही माने तो क्या दोष आता है ? उत्तर-रागरूप चारित्र गुण, बोलने रूप भाषावर्गणा, मुंह रूप आहारवर्गणा नष्ट होकर आत्मा का ज्ञान गुण बन जावे तो ऐसा माना जा सकता है कि रागरूप चारित्रगुण, बोलने रूप भाषावर्गणा, महरूप आहार वर्गणा उपादान कारण और ज्ञान उपादेय। लेकिन ऐसा नही हो सकता है, क्योकि उपादान-उपादेय अभिन्न सत्ता वाले पदार्थो मे ही होता है। राग, बोलना, मुंह खुला, ज्ञान जिनकी सत्तासत्त्व भिन्न-भिन्न है। ऐसे पदार्थो मे उपादान-उपादेय नहा होता हैं।