________________ ( 163 ) व्याप्य व्यापक सवध एक द्रव्य का उसकी पर्याय मे ही होता है भिन्नभिन्न पदार्थों मे नही होता है / प्रश्न १२-क्या द्रव्यकर्म का उदय व्यापक और ससार अवस्था व्याप्य ठीक है ? उत्तर-बिल्कुल नहीं, क्योकि ससार अवस्था व्याप्य और जीव व्यापक है। प्रश्न १३-कोई कहे, हम तो कर्म के उदय को व्यापक और संसार अवस्था व्याप्य, ऐसा ही मानेंगे तो क्या दोष आवेगा ? उत्तर–जीव के नाश का प्रसग उपस्थित होवेगा और कर्म के उदय को जीव बन जाने का प्रसग उपस्थित होवेगा। लेकिन व्याप्यव्यापक सम्वन्ध एक ही द्रव्य का उसकी पर्याय मे होता है भिन्न-भिन्न द्रव्यो मे नही होता है। प्रश्न १४-क्या द्रव्य कर्म का अभाव व्यापक और संसार का अभाव व्याप्य, ठीक है? उत्तर-बिलकुल नहीं, क्योकि ससार का अभाव व्याप्य और जीव व्यापक है। प्रश्न १५--कोई कहे फर्म का अभाव व्यापक और संसार का अभाव व्याप्य ऐसा ही माने तो क्या दोष आवेगा? उत्तर-जीव के अभाव का प्रसग उपस्थित होवेगा और कर्म के जीव बन जाने का प्रसग उपस्थित होवेगा। लेकिन व्याप्य-व्यापक सम्बन्ध एक द्रव्य का उसकी पर्याय मे ही होता है अलग-अलग द्रव्यो मे नही होता है। प्रश्न १६-क्या वायु का चलना व्यापक और समुद्र में लहर उठी व्याप्य, ठीक है? उत्तर-बिल्कुल नही, क्योकि समुद्र मे लहर उठी व्याप्य और समुद्र व्यापक है।