________________ ( 162 ) से पर पदार्थो मे जो कर्ता-कर्म माना था उसका अभाव हो जाता है। जगत का ज्ञाता दृष्टा साक्षीभूत वन जाता है। प्रश्न ६–सम्यग्दर्शन का व्याप्य-व्यापक कौन है और कौन नहीं उत्तर-आत्मा का श्रद्धा गुण व्यापक और सम्यग्दर्शन व्याप्य है। और देव-गुरु-शास्त्र, दर्शन मोहनीय के उपशमादि व्यापक नहीं है। प्रश्न ७-केवलज्ञान हुआ इसमें व्याप्य-व्यापक कौन है और कौन नहीं है ? उत्तर-आत्मा का ज्ञान गुण व्यापक है और केवलज्ञान व्याप्य है और वज्रवृषभनाराच सहनन, ज्ञानावरणीय का अभाव, चौथा काल और शुभभाव व्यापक नही है। प्रश्न ८-क्या रोटी व्याप्य और बाई व्यापक ठीक है? उत्तर-बिल्कुल नही, क्योकि आटा व्यापक और रोटी व्याप्य है। प्रश्न :-यदि बाई को व्यापक कहे तो क्या होगा? उत्तर-बाई के नाश होने का प्रसग उपस्थित होवेगा और बाई आटा बन जावे तो ऐसा कहा जा सकता है। लेकिन व्याप्य-व्यापक सम्बन्ध एक ही द्रव्य का उसकी पर्याय मे होता है दो द्रव्यो में नहा होता है। प्रश्न १०-क्या जीव के विकारी परिणाम व्यापक और पुद्गल के विकारी परिणाम व्याप्य, ठीक है ? उत्तर-बिल्कुल नही, क्योकि पुदगल के विकारी परिणाम व्याप्य और कार्माण वर्गणा व्यापक है। प्रश्न ११-कोई कहे, हम तो जीव के विकारी परिणाम व्यापक, और पुद्गल कम व्याप्य ऐसा ही मानेंगे, तो क्या दोष आवेगा' उत्तर-जीव के नाश का प्रसग उपस्थित होवेगा और जाप होकर काणिवर्गणा बन जावे तो ऐसा कहा जा सकता है।